इतिहास रचाने
बड़ा फासला जीने में हैफटे वस्त्र को सीने में हैकटु-मधु आसव पीने में हैसाँस-साँस में टँगी जिंदगी दुनिया में इतिहास रचाने इस जीवन में मरना पड़ता है!
बड़ा फासला जीने में हैफटे वस्त्र को सीने में हैकटु-मधु आसव पीने में हैसाँस-साँस में टँगी जिंदगी दुनिया में इतिहास रचाने इस जीवन में मरना पड़ता है!
धान रोपते हाथअन्न के लिए तरसते हैं,पानी में दिनभरखट कर भी प्यासे रहते हैं।
ज्यों-ज्यों शहर अमीर हो रहे नदियाँ हुई गरीब जाएँ कहाँ मछलियाँ प्यासी फेंके जाल नसीब? जब गंगाजल गटर ढो रहा, क्यों नदियाँ चुप हैं?
शहरी राधा को गाँवों की मुरली नहीं सुहाती है, पीतांबर की जगह ‘जींस’ की चंचल चाल लुभाती है। सुविधा की शैम्पन में खोकर, रस की गागर भूल गए।
फिर-फिर जेठ तपेगा आँगन, हरियल पेड़ लगाये रखना, संबंधों के हरसिंगार की शीतल छाँव बचाये रखना।
नैन फागुनी रूप चंदनी, तन सबने देखा पर मीरा की कवितावज्ञला मन किसने देखा?कानों में चंदा का कुंडल पहन चांदनी साड़ी,