क्यों नदियाँ चुप हैं?

ज्यों-ज्यों शहर अमीर हो रहे नदियाँ हुई गरीब जाएँ कहाँ मछलियाँ प्यासी फेंके जाल नसीब? जब गंगाजल गटर ढो रहा, क्यों नदियाँ चुप हैं?

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सुविधा की शैम्पेन

शहरी राधा को गाँवों की मुरली नहीं सुहाती है, पीतांबर की जगह ‘जींस’ की चंचल चाल लुभाती है। सुविधा की शैम्पन में खोकर, रस की गागर भूल गए।

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