धान रोपते हाथ
धान रोपते हाथअन्न के लिए तरसते हैं,पानी में दिनभरखट कर भी प्यासे रहते हैं।
धान रोपते हाथअन्न के लिए तरसते हैं,पानी में दिनभरखट कर भी प्यासे रहते हैं।
ज्यों-ज्यों शहर अमीर हो रहे नदियाँ हुई गरीब जाएँ कहाँ मछलियाँ प्यासी फेंके जाल नसीब? जब गंगाजल गटर ढो रहा, क्यों नदियाँ चुप हैं?
फिर-फिर जेठ तपेगा आँगन, हरियल पेड़ लगाये रखना, संबंधों के हरसिंगार की शीतल छाँव बचाये रखना।
नैन फागुनी रूप चंदनी, तन सबने देखा पर मीरा की कवितावज्ञला मन किसने देखा?कानों में चंदा का कुंडल पहन चांदनी साड़ी,
बहुत घुटन है, बंद घरों में, खुली हवा तो आने दो, संशय की खिड़कियाँ खोल दो, किरनों को मुस्काने दो!
अहसासों के जलतरंग को पुरबा छेड़ गई। आँगन में– खिलती खिलती निशिगंधा भी स्वच्छंद हुई।किरणों के झुरमुट में उलझी चिड़िया सी चितवन पूनम फिर-फिर रूप निहारे झील बनी दर्पण।