पीर नहीं यह, मेरे प्राणों में पलती है प्रीति तुम्हारी!

पीर नहीं यह, मेरे प्राणों में पलती है प्रीति तुम्हारी!

और जानेपीर नहीं यह, मेरे प्राणों में पलती है प्रीति तुम्हारी!

क्या बोलूँ, क्या बात है!

क्या बोलूँ, क्या बात है! नील कमल बन छाईं आँखें; राग-रंग ने पाईं पाँखें; बाण बने तुम इंद्रधनुष पर! जग पीपल का पात है!!

और जानेक्या बोलूँ, क्या बात है!