सूखते जल-गीत
बैठी है चिड़ियाएँ नदी के मुहाने पर। सूखते जल-गीत जैसे टूट जाते धूप के गहने डूबकर ही नहाती है रात मकर उजास पहने
बैठी है चिड़ियाएँ नदी के मुहाने पर। सूखते जल-गीत जैसे टूट जाते धूप के गहने डूबकर ही नहाती है रात मकर उजास पहने
दिन तो शुरू हुए थे दिन से बदल गए चलकर आगे।समय बीत जाता फूलों के नामों को गिनने में परीकथा जैसी ही कोई निजी कथा बनने में
साँझ होते क्रोशिया सेकाढ़ती है रोशनीखुशबुओं के फूल पहनेगाती हैं अंगुलियाँ।हरी चादर में लिपटकरसो रहे हैं बाध-वनतितलियाँ लाई
उड़ा श्वेत कलहंस स्नेह का– लेकर याद तुम्हारी। आई याद तुम्हारी।
मुझमें गीत मुखर हों जैसे मन का मीत पुकारे! सुधि अपनी जो टाँक-टाँक दे
शंकाओं के बादल तेरे– घिर आये हैं मेरे मन में!