पीर नहीं यह, मेरे प्राणों में पलती है प्रीति तुम्हारी!
पीर नहीं यह, मेरे प्राणों में पलती है प्रीति तुम्हारी!
पीर नहीं यह, मेरे प्राणों में पलती है प्रीति तुम्हारी!
क्या बोलूँ, क्या बात है! नील कमल बन छाईं आँखें; राग-रंग ने पाईं पाँखें; बाण बने तुम इंद्रधनुष पर! जग पीपल का पात है!!
कण-कण में है मूर्ति तुम्हारी, किरण-किरण में हास तुम्हारा