Skip to content
नई धारा
  • गद्य धारा
  • काव्य धारा
  • कथा धारा
  • व्यंग्य धारा
  • हमारे बारे में
  • अन्य
    • संस्मरण/स्मरणइस पृष्ठ पर आपको लेख, कविताएँ, कहानियाँ, आलोचक और यात्रा वृत्तांत मिलेंगे। एक लंबा स्थापित तथ्य है कि जब एक पाठक एक पृष्ठ के खाखे को देखेगा तो पठनीय सामग्री से विचलित हो जाएगा.
    • हम इनसे मिले थे
    • स्त्री विमर्श
    • दलित विमर्श
    • भारत-भारती
    • विश्व-भारती
    • हमें यह कहना है
    • आपने यह कहा है
Menu Close
  • गद्य धारा
  • काव्य धारा
  • कथा धारा
  • व्यंग्य धारा
  • हमारे बारे में
  • अन्य
    • संस्मरण/स्मरण
    • हम इनसे मिले थे
    • स्त्री विमर्श
    • दलित विमर्श
    • भारत-भारती
    • विश्व-भारती
    • हमें यह कहना है
    • आपने यह कहा है
Search for:

गीत

Home » गीत » Page 7
 सुधि और शैला : : एक प्रतिक्रियात्मक गीत

सुधि और शैला : : एक प्रतिक्रियात्मक गीत

  • Post author:sanjay.panday
  • Post published:May 1, 1964
  • Post category:काव्य धारा
  • Post comments:0 Comments

शंकाओं के बादल तेरे– घिर आये हैं मेरे मन में!

और जानेसुधि और शैला : : एक प्रतिक्रियात्मक गीत
 यही गाछ है जिसके नीचे कभी किसी दिन सपना टूटा

यही गाछ है जिसके नीचे कभी किसी दिन सपना टूटा

  • Post author:sanjay.panday
  • Post published:May 1, 1964
  • Post category:काव्य धारा
  • Post comments:0 Comments

यही गाछ है जिसके नीचे कभी किसी दिन सपना टूटा

और जानेयही गाछ है जिसके नीचे कभी किसी दिन सपना टूटा
 राह हमारी गुजर गयी है !

राह हमारी गुजर गयी है !

  • Post author:sanjay.panday
  • Post published:April 1, 1964
  • Post category:काव्य धारा
  • Post comments:0 Comments

बहुत करीब तुम्हारे घर से राह हमारी गुजर गयी है !

और जानेराह हमारी गुजर गयी है !
 तुम हो कौन छिपे गहरे में ?

तुम हो कौन छिपे गहरे में ?

  • Post author:sanjay.panday
  • Post published:April 1, 1964
  • Post category:काव्य धारा
  • Post comments:0 Comments

तुम हो कौन छिपे गहरे में ? पाया नहीं लाख चेहरों में

और जानेतुम हो कौन छिपे गहरे में ?
 प्रतिमा गीत

प्रतिमा गीत

  • Post author:sanjay.panday
  • Post published:April 1, 1964
  • Post category:काव्य धारा
  • Post comments:0 Comments

मैं प्रतिमा को फूल चढ़ाता, मैं पूजा के फूल चढ़ाता

और जानेप्रतिमा गीत
 शाप में तेरे छुपे वरदान मेरे

शाप में तेरे छुपे वरदान मेरे

  • Post author:sanjay.panday
  • Post published:January 1, 1954
  • Post category:काव्य धारा
  • Post comments:0 Comments

शाप में तेरे छुपे वरदान मेरे

और जानेशाप में तेरे छुपे वरदान मेरे
  • Go to the previous page
  • 1
  • …
  • 4
  • 5
  • 6
  • 7
  • 8
  • 9
  • 10
  • …
  • 13
  • Go to the next page

Recent Posts

  • वक्त होता है
  • प्रेमचंद और दलित विमर्श
  • आपके जैसा तो शृंगार नहीं कर सकते
  • मुझे बचपन से कोई
  • शिशु

Recent Comments

  • उदय राज सिंह स्मृति सम्मान से सम्मानित लेखकों के व्याख्यान - नई धारा on ‘स्त्री जितना दिखती है, सिर्फ उतनी भर ही नहीं होती’–सूर्यबाला
  • वातभक्षा - नई धारा on वातभक्षा
  • व्यंग्यकार प्रेम जनमेजय से बातचीत - नई धारा on नई धारा संवाद : सूर्यबाला (कथा-लेखिका)
  • भारत और भारतीयता पर विचार | article on nationalism by shatrughan prasad on कभी मनुहार, कभी फटकार!

संपादक से संपर्क करें

  • +91 9334333509
  • editor@nayidhara.inOpens in your application
  • Opens in a new tab
  • Opens in a new tab
  • Opens in a new tab
  • Opens in a new tab
  • Opens in a new tab
Copyright - OceanWP Theme by OceanWP

WhatsApp us