बोलो, क्या गाऊँ गीत आज ? कण-कण में जलती जागी हैं
बोलो, क्या गाऊँ गीत आज ? कण-कण में जलती जागी हैं छाती कराहती है सब की, इंसान आज का बागी है।
बोलो, क्या गाऊँ गीत आज ? कण-कण में जलती जागी हैं छाती कराहती है सब की, इंसान आज का बागी है।
जब सुधि आती गा लेता हूँ। प्रिये! तुम्हारे गाये गीतों को गा मन बहला लेता हूँ।
रोकर दिल बहला लेने दो। दिल-दरिया में तूफानों का