यही गाछ है जिसके नीचे कभी किसी दिन सपना टूटा
यही गाछ है जिसके नीचे कभी किसी दिन सपना टूटा
यही गाछ है जिसके नीचे कभी किसी दिन सपना टूटा
बहुत करीब तुम्हारे घर से राह हमारी गुजर गयी है !
तुम हो कौन छिपे गहरे में ? पाया नहीं लाख चेहरों में
पीर नहीं यह, मेरे प्राणों में पलती है प्रीति तुम्हारी!