क्या बोलूँ, क्या बात है!
क्या बोलूँ, क्या बात है! नील कमल बन छाईं आँखें; राग-रंग ने पाईं पाँखें; बाण बने तुम इंद्रधनुष पर! जग पीपल का पात है!!
क्या बोलूँ, क्या बात है! नील कमल बन छाईं आँखें; राग-रंग ने पाईं पाँखें; बाण बने तुम इंद्रधनुष पर! जग पीपल का पात है!!
कण-कण में है मूर्ति तुम्हारी, किरण-किरण में हास तुम्हारा
बोलो, क्या गाऊँ गीत आज ? कण-कण में जलती जागी हैं छाती कराहती है सब की, इंसान आज का बागी है।