कृष्णा और लारी
लारी काफी देर तक हमारी बेटी के यहाँ रही। बहुत सारे विषयों पर उससे बातें होती रहीं। बीच-बीच में जाने क्यों आज मुझे कृष्णा की बहुत याद आती रही।
लारी काफी देर तक हमारी बेटी के यहाँ रही। बहुत सारे विषयों पर उससे बातें होती रहीं। बीच-बीच में जाने क्यों आज मुझे कृष्णा की बहुत याद आती रही।
क्या कहूँ साहब! सोने का भाव मुझे भी तो सता रहा है! अमर के लिए जितने ग्राहक आते हैं–सभी से मैं भी तो यही सवाल करता हूँ। सोने के भाव इस कदर बढ़ रहे हैं कि मैं खाऊँ किधर की चोट, बचाऊँ किधर की चोट!
अब वह अपने रूप और शृंगार के लिए पहले से ज्यादा सजग रहने लगी। आखिर रूप की हाट की वह सजग पारखी जो थी!
सब रस्में समाप्त हुईं और गाँव की स्त्रियों में शुहरत हो गई कि आज सिस्टर राजमुनी इतनी खुश थीं कि एक रात में तीन-तीन रेशमी साड़ियाँ बदलीं उन्होंने। वाह री किस्मत!
किरणमयी भी अपनी गिरहस्ती अलग ले जाने को अड़ी हुई है। वह भी उस चौके में खाना नहीं बनाती–बाजार से कुछ मँगाकर खा लेती। बीच में बेचारा अजीत पिस रहा है। एक ओर बीवी, दूसरी ओर भाई। खाऊँ किधर भी चोट, बचाऊँ किधर की चोट!
शर्मा जी हँसते-मुस्कुराते मालकिन को उनकी व्यक्तिगत सफलता पर बधाई देने अंदर गए तो वहाँ दूसरा ही भयानक दृश्य देखकर वह सन्न हो गए। मालकिन का इतने दिनों से और इतनी बंदिशों से बनाया हुआ मूड एकदम बिगड़ गया है और चौके में से चावल-दाल निकलवाकर नाली में फेंकवा रही हैं। रणचंडी का रूप धारण कर लिया है और गालियों की बौछार से गानेवालियों को भी मात कर रही हैं