भूख

दूर-दूर से भूखों की टोलियाँ मेरे हाते में पहुँचतीं और जहाँ कहीं भी डूबे हुए अनाज मिलते उन्हें डुबकी लगाकर लूट लेतीं।

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पालनाघर

मुरारी बाबू ने आपके यहाँ से जाकर पालनाघर में ताला लगा दिया और भंगियों को भड़का दिया–खबरदार, इस पालनाघर में कोई भी बच्चा न जाने पाए।

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तलाश

पचास हजार नहीं–सिर्फ पचास रुपयों में वह झंझटों को पार कर अपनी बेटी को सुखी कर लेगा। इसके लिए इतना ही सब कुछ है। मगर वह भी मयस्सर नहीं। उधर उतना सब कुछ पाने पर भी तसल्ली नहीं।

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नेत्रदान

पूर्वजन्म के शाप तथा पाप-पुण्य के गोरखधंधे से निकलकर विज्ञान ने उसे दो आँखें दे दीं। ‘वाह! कितनी बेजोड़ हैं ये आँखें, कितनी अनमोल हैं ये आँखें!’

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हरे राम…

क्या भारत में मीनी शर्ट, ड्रेन पाइप पतलून, कोकाकोला की तरह अब रामनाम की महिमा भी अमरीका से इंपोर्ट होकर ही आएगी? और, शायद तभी हम उसकी गरिमा को समझ भी पाएँगे! राम जाने!

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नजर ही नजर

मुझे एकाएक सूझा कि अब यहाँ से भाग चलो नहीं तो राजरानी के रस्मों का सिलसिला कभी टूटेगा ही नहीं। अब तो पंख फड़फड़ाकर पड़े रहना है। जैसे छप्पन वैसे घप्पन!

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