नजर ही नजर

मुझे एकाएक सूझा कि अब यहाँ से भाग चलो नहीं तो राजरानी के रस्मों का सिलसिला कभी टूटेगा ही नहीं। अब तो पंख फड़फड़ाकर पड़े रहना है। जैसे छप्पन वैसे घप्पन!

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प्रायश्चित्त

कृष्ण कुमार बाबू कचहरी से आए, तो ऐसे थके हुए थे, जैसे उनमें जान ही नहीं थी। न दिल का पता चलता था और न दिमाग ठीक से काम करता था। घर में आते ही कमरे में घुस गए। शेरवानी उतार कर बड़ी बेदिली से एक ओर डाल दी, और पलंग पर लेट गए।

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दो नीली चमकीली आँखें

भादो की काली अंधेरी रात–बादल झूम-झूम कर बरस रहे हैं। सर्वत्र गंभीर नीरवता छाई है। सभी फ्लैटों की खिड़कियाँ बंद हैं

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साँप की आँखें

मोटे चावल का भात चने और खेसारी के साग के साथ सानकर हेमा बड़े-बड़े निवाले निगलती और आँगन में पसरती धूप को देखती जाती थी, तभी अद्धा का घंटा बजा। बाहर बच्चे शोर मचा कर खेल रहे थे। हेमा को लगा जैसे अबतक स्वाद देने वाले अन्न के ग्रास उसके कंठ में अटक रहे हों।

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तुम कितनी महान हो!

किरण को राजेश और कुसुम की सहानुभूति पाकर एक सहारा मिल गया। उसने योजना बनाई कि एम. ए. की डिग्री लेकर वह कहीं अध्यापिका हो जाए। अविवाहित रहते हुए ही वह जीवन बिता दे।

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काल और कला

सत्ता तो सत्ता में समा गई, पर कला को काल की कैंची भी कतर न सकी। जो सत्य है; शिव है, सुंदर है, वह चिरंतन भी है, चिर-नवीन भी।

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