अपनी-अपनी गाँठ

मंजु के चेहरे पर एक रंग आ रहा है, एक रंग जा रहा है। आसमान पर बादल छाए हैं। हवा तेज-तुंद है आज। लगता है, तूफान का जोर है। मगर पानी पड़े या पत्थर, अपनी ड्यूटी की पाबंदी जो बड़ी चीज ठहरी!

और जानेअपनी-अपनी गाँठ

तट के बंधन

अनीला को जब से उर्मि का पत्र मिला तब से उसके अंदर का अंतर्दाह निरंतर सुलगता रहा है। जब वह समझ रही थी कि एक जीवन का अंत हो चुका तभी उसमें सोई पड़ी प्राणों की चिनगारी सुलगने लगी।

और जानेतट के बंधन

संगिनी

गाड़ी से उतर कर भोला पैदल ही घर की ओर चल पड़ा। स्टेशन से थोड़ी ही दूर पर तो उसका गाँव है, जहाँ चारों ओर लहलहाते अरहर के खेत हैं, पीली-पीली सरसों फैली है

और जानेसंगिनी