तट के बंधन
अनीला को जब से उर्मि का पत्र मिला तब से उसके अंदर का अंतर्दाह निरंतर सुलगता रहा है। जब वह समझ रही थी कि एक जीवन का अंत हो चुका तभी उसमें सोई पड़ी प्राणों की चिनगारी सुलगने लगी।
अनीला को जब से उर्मि का पत्र मिला तब से उसके अंदर का अंतर्दाह निरंतर सुलगता रहा है। जब वह समझ रही थी कि एक जीवन का अंत हो चुका तभी उसमें सोई पड़ी प्राणों की चिनगारी सुलगने लगी।
अपनी पत्नी की मृत्यु के तीसरे दिन महँगू फिर मुझसे मिला। मेरे कुछ पूछने के पहले ही वह बोला– “सरकार, रात वह आई थी।”
गाड़ी से उतर कर भोला पैदल ही घर की ओर चल पड़ा। स्टेशन से थोड़ी ही दूर पर तो उसका गाँव है, जहाँ चारों ओर लहलहाते अरहर के खेत हैं, पीली-पीली सरसों फैली है
“क्या कर रही हो बेटा ?” बुड्ढे ने खाँसते हुए कहा । उसकी आवाज़ में थरथराहट थी।
“ऐ लो, माँ काली की पूजा तो कभी की हो चुकी, सारा कलकत्ता ही उमड़ पड़ा था उस अवसर पर। यह क्या फिर ले उठे तुम?”
इमाम साहब ने मस्जिद का द्वार खोला। चारों चट्टाइयाँ पानी से भींग गई थीं। बाप-बेटी एक दूसरे की ओर ऐसे देखने लगे जैसे बूझ रहे हों ‘अब क्या होगा?