इमाम साहब

इमाम साहब ने मस्जिद का द्वार खोला। चारों चट्टाइयाँ पानी से भींग गई थीं। बाप-बेटी एक दूसरे की ओर ऐसे देखने लगे जैसे बूझ रहे हों ‘अब क्या होगा?

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अपनी अपनी राह

आज पहाड़ी तराई में नदी के तट पर फिर आँखें चार होती हैं। बलदेव अकेला गंगा के तट पर बैठा है–अपने ही में खोया हुआ जैसे! अरुन के साथ एक गिरोह आ रहा है। कितने तो सर से पैर तक काट-पट में ऐन-फैन बन रहे हैं। जाने क्या-क्या सामान भी साथ है। मोटरों की तो शुमार नहीं।

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 परीक्षा की तैयारी
Portrait of Rodo Reading by Camille Pissarro

परीक्षा की तैयारी

ओफ्फोह! यह चुड़ैल आज मुझे पढ़ने नहीं देगी! कोई झख इसके सिर पर सवार है। इसकी चिल्ल-पों के मारे पढ़ाई में मन ही नहीं लग रहा है।...बाप रे बाप!

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सौंदर्य-संगीत

उसका घड़ा भर गया है शायद। उसने मेरी ओर देखा। मैं उसकी ओर देख रहा था, फिर भी लगा कि कोई नई घटना हो गई हो। वह मुस्कुराई। क्यों? इसलिए कि उसका यौवन यही आज्ञा देता है।

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