तट के बंधन

अनीला को जब से उर्मि का पत्र मिला तब से उसके अंदर का अंतर्दाह निरंतर सुलगता रहा है। जब वह समझ रही थी कि एक जीवन का अंत हो चुका तभी उसमें सोई पड़ी प्राणों की चिनगारी सुलगने लगी।

और जानेतट के बंधन

संगिनी

गाड़ी से उतर कर भोला पैदल ही घर की ओर चल पड़ा। स्टेशन से थोड़ी ही दूर पर तो उसका गाँव है, जहाँ चारों ओर लहलहाते अरहर के खेत हैं, पीली-पीली सरसों फैली है

और जानेसंगिनी

इमाम साहब

इमाम साहब ने मस्जिद का द्वार खोला। चारों चट्टाइयाँ पानी से भींग गई थीं। बाप-बेटी एक दूसरे की ओर ऐसे देखने लगे जैसे बूझ रहे हों ‘अब क्या होगा?

और जानेइमाम साहब