रुचि
प्रीत की दो अवस्थाएँ होती हैं। पहली अवस्था वह होती है जिसमें प्रीत पके दूध में जोरन पड़े दही की तरह जमते-जमते जम जाता है।
प्रीत की दो अवस्थाएँ होती हैं। पहली अवस्था वह होती है जिसमें प्रीत पके दूध में जोरन पड़े दही की तरह जमते-जमते जम जाता है।
मंदाकिनी नौकर दाई के दु:ख से बेदम हो उठी थी। नौकर तो उसके कभी था ही नहीं। बेचारी विधवा थी, गाँव से अपने खेत की उपज मँगा लेती थी।
मैं जब तीर निकाल रहा था तो पंछी का विशाल सुंदर पंख मेरे सिर पर आ लगा। छाया के अंचल तले विश्वास ने साँस खींची।
गत रात को चुप अकेले में पलंग पर पड़े हुए बादशाह को जिस परी जमाल का स्वर मध्यरात्रि की अभिसारिका के प्रथम चुंबन-सा प्रतीत हुआ था, आज वही स्वर तिक्त नीम-सा अनुभूत हुआ।
पहले शीर्षक से आप चौंकेंगे–सो उसे समझा दूँ। भगवे से तात्पर्य है हिंदूधर्म की ध्वजा जैसे शिवाजी का भगवा झंडा, ‘हिंदू पद-पादशाही’ की पताका।
यहाँ तो जो आज आँखों का खिलौना है वही कल घिनौना बन आँखों से ओझल हो जाता और जो कल कल्पना से भी परे था वही आँखों में समाकर उसकी प्रेरणा बन जाता।