जो सोचा वो कब हुआ

यामिनी अपनी बात बोलने के बाद बिल्कुल खामोश हो गई थी। घर से निकलते वक्त जब उसने बेटे को गले लगाया, उसे छुटपन वाला चिराग बहुत याद आया; जिसे माँ चाहिए होती थी।

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बैकग्राउंड

‘मैं नहीं जानता, बहुत लोग रोज आते हैं–उनका परिचय तो लेता नहीं।’ वह लेडी यहाँ नई-नई आई थी और डिप्टी कलक्टर के पोस्ट पर थी।

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पाणिग्रहण

अपने इर्द-गिर्द से आ रहे विमर्श को जगरनिया के माई बाबू सुन रहे हैं। बात एक होती है लेकिन दिमाग अपने अनुसार आशय ढूँढ़ता है।

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हत्या-पर्व

जब मंदिर के कपाट बंद करने का समय हुआ, तो बाबा छूरा छिपाए कुटिया से बाहर आए और भगवान शिव की प्रतिमा के आगे नतमस्तक होकर विनती की,

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