एक दिन का युद्ध

पहला संस्करण जल्दी ही प्रेस में भेजना है। बदहवास-सा वह घर पर फोन पर हिदायत दे रहा था। वह बार-बार प्रेस को बता रहा था कि जितनी जल्दी मशीन चालू हो सके कर दो।

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मैं समलिंगी नहीं हूँ

वही हँसी, वही आँखें, वही हृदय और जब तुम मुझे जु...री...कहकर पुकारती हो तो मैं विस्मित हो जाती हूँ। इतनी समानता कैसे हो सकती है।

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चौखट की जगह

वास्तुकार हँसा–‘जिंदगी में ज्यादा कुछ नहीं चाहिए होता है, बस लौट पड़ने को एक रास्ता और गिर पड़ने को घर के भीतर खुलता कोई दरवाजा!’

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जो सोचा वो कब हुआ

यामिनी अपनी बात बोलने के बाद बिल्कुल खामोश हो गई थी। घर से निकलते वक्त जब उसने बेटे को गले लगाया, उसे छुटपन वाला चिराग बहुत याद आया; जिसे माँ चाहिए होती थी।

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बैकग्राउंड

‘मैं नहीं जानता, बहुत लोग रोज आते हैं–उनका परिचय तो लेता नहीं।’ वह लेडी यहाँ नई-नई आई थी और डिप्टी कलक्टर के पोस्ट पर थी।

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