विदारक भाग्य

चारों तरफ अफरा-तफरी मची है। किसी की साँसें फूल रही हैं, कोई बुखार तो कोई दर्द से चीख रहा है। कहीं-कहीं विलाप फूट पड़े हैं।

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आख़िरी पहर

दो बरस कहीं निकलना, किसी से मिलना-जुलना क्या बंद हुआ, ज़िंदगी का ताप ही चला गया। सब पर बुढ़ापा आ गया। वैसे तो पार्क इत्ता सुंदर है, इत्ता बड़ा। पीछे हरे-हरे घासों का बड़ा मैदान। उतना ही घूम लें तो बहुत है।

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साँप

शर्ट-पैंट फाड़ने के बाद भीतरी वस्त्र भी नोच फेंके गए। शिल्पा ज्यों-ज्यों अपने गठीले बदन और मछलियों की-सी मांसपेशियों को फुरती से झटकती, त्यों-त्यों चारों ओर से दबाव बढ़ता ही चला गया। उसका तड़पना, छटपटाना भी काम न आया।

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दुम

‘आज देखता हूँ।’–आत्मविश्वास से मैं तन गया था! इसका आभास होते ही मेरी गर्दन पुनः सामान्य हो गई। ‘मामा जी, यदि एक बार अंदर कर देंगे तो जल्दी बेल भी नहीं होने देंगे एमएलए साहब, उसका तो जिला जज के साथ अच्छा उठना-बैठना होता है।

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न्यायाधीश की पत्नी

न्यायाधीश की पत्नी ने हर पल पर पकड़ हासिल कर ली। उसने मनमोहक और लुभावनी अदाएँ निकोलस विडल पर इस्तेमाल की।

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