बेटी
पर मम्मी इतनी सुंदर दुनिया में हमारे अपने ही हम बेटियों से नफरत क्यों करते हैं? हमें भी तो इस सुंदर दुनिया को देखने का मानवीय हक है।
पर मम्मी इतनी सुंदर दुनिया में हमारे अपने ही हम बेटियों से नफरत क्यों करते हैं? हमें भी तो इस सुंदर दुनिया को देखने का मानवीय हक है।
अभी फोन पर बात ही हो रही थी कि बातों के बीच में टू टू टू की आवाज आने लगी। ऐसा ही होता है पुस्तक प्रकाशन के बाद के कुछ दिनों तक।
मेरा यही रूप मेरी लिए बेड़ी बन चुकी है दीदी। मन तो करता है अपने चेहरे को जला दूँ। जहाँ जाती हूँ, वहीं ताना सुनना पड़ता है।
अरसे बाद सिराज को देखकर टुटुल मुस्कुराया। सिराज अपने पिता के पीछे खड़ा था। वह काफी लंबा हो गया है, उसकी पतली मूँछें भी उगने लगी थी। सिराज के पिता बटरफ्लाई मॉल के दरबान के आगे हाथ जोड़कर कह रहे थे।
प्रभाकर और फुलझड़िया के बीच मानवीय संवेदनाओं की जो लौकिक नहीं हो सकती, रिश्ते का कोई नामकरण नहीं हो सकता
‘मैं वनफूल हूँ, जिसे बंधन की चाह नहीं...अपने वन के एकांत में खिलती हूँ, महकती हूँ...घूमती हूँ...मैं सोलो ट्रैवलर हूँ।