घर का रास्ता
मेरी ही मति मारी गई थी, न जाने घर आने की इतनी जल्दी क्या थी? सब कुछ तो था ही।
मेरी ही मति मारी गई थी, न जाने घर आने की इतनी जल्दी क्या थी? सब कुछ तो था ही।
ट्रैक्टर नामक यांत्रिक वाहन ने खेतों से हल-बैल बेदखल कर ही छोड़ा, ‘हलवाह’ शब्द को अप्रासंगिक बना कर ही छोड़ा।
अधिकांश लोग तो ऐसे ही हैं। उनकी दृष्टि में भी मैं ही पापी हूँ, जो उनको अपने घर आने से रोक रहा हूँ।
इसका बस एक ही इलाज है और वह है शादी–इसकी शादी जल्द करा दें फिर ये दौरे आने अपने आप ही बंद हो जाएँगे।
चलो अब गैर-दलितों में विशेषकर ब्राह्मणों में भी जाति-पाति, ऊँच-नीच को लेकर बड़ी तेजी से बदलाव आ रहा है।
जब तुम किसी काम को टालने के लिए हमेशा कहते थे–‘थोड़ा-सा और रुक जाएँ?’ याद करो, सालों पुरानी यही लाइन तकियाकलाम बनती गई।’