किसी दिन अचानक
अपने आसपास के नजदीकी लोगों के बदलते हावभाव भाँपकर मौन हो जातीं वे। बाहरी व अंदरूनी जीवन यानी दो अलग-अलग सच्चाइयाँ।
अपने आसपास के नजदीकी लोगों के बदलते हावभाव भाँपकर मौन हो जातीं वे। बाहरी व अंदरूनी जीवन यानी दो अलग-अलग सच्चाइयाँ।
शाम का धुँधलका अपने चरम पर था। काले बादलों का झुंड, सफेद बादलों के साथ एकाकार होते, डूबते सूरज की लालिमा में विलीन हो
मैं मूर्ख गिम्पेल हूँ। मैं खुद को मूर्ख नहीं समझता, बल्कि मैं तो खुद को इसके ठीक उलट ही मानता हूँ। किंतु लोग मुझे मूर्ख कहते हैं।
भोर हो चुकी थी, मन ही मन ईश्वर का नाम लेती गोदावरी देवी बालकनी में बैठी स्वर्णिम समय का आनंद लेतीं निर्निमेष दृष्टि से सामने निहार रही थी।
रात में दीनानाथ ने अपनी पत्नी से कहा–‘अब हम अपने मकान में रहते हुए पूरे सौ वर्ष जिएँगे।’ उनकी पत्नी ने हँसकर कहा–‘सिर्फ सौ वर्ष ही क्यों?
मीडिया पर खबरें छाई हुई थीं। देवकीनंदन त्रिपाठी ने सुना तो सन्न रह गया था, ‘कौन मरवा दिया सुजतवा को।’