डार से टूटे हुए

‘भइया सतेन्द्रपाल ने जीवन भर समाज का साथ नहीं दिया। समाज रूपी डार से टूटे हुए लोग हैं ये! फिर आज समाज उनका साथ क्यों दे?’

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गहरी गहरी साँसें

चुप क्यों हैं जवाब दीजिए न...कुछ तो बोलिए...आप चली गईं क्या...आप हैं नहीं क्या? गहरी-गहरी साँसें तो सुनाई दे रही हैं!

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