जात न पूछो साधु की

सोनवाँ ने दिल कड़ाकर कहा–‘जो होना था सो तो हो गया। इसी महीने की छब्बीस तारीख से तुम्हारा इम्तिहान है। चलो हाथ-मुँह धो लो, कुछ खिला दूँ तुझे,

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आधी हक़ीक़त

समीर जैन उन लोगों में से था जो पक्की नौकरियों में ऊबते हैं और कच्ची नौकरियों से आकृष्ट होते हैं। भारत सरकार के भाषा विभाग

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किसी दिन अचानक

अपने आसपास के नजदीकी लोगों के बदलते हावभाव भाँपकर मौन हो जातीं वे। बाहरी व अंदरूनी जीवन यानी दो अलग-अलग सच्चाइयाँ।

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कॉफी में क्रीम

शाम का धुँधलका अपने चरम पर था। काले बादलों का झुंड, सफेद बादलों के साथ एकाकार होते, डूबते सूरज की लालिमा में विलीन हो

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मूर्ख गिम्पेल

मैं मूर्ख गिम्पेल हूँ। मैं खुद को मूर्ख नहीं समझता, बल्कि मैं तो खुद को इसके ठीक उलट ही मानता हूँ। किंतु लोग मुझे मूर्ख कहते हैं।

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