डार से टूटे हुए
‘भइया सतेन्द्रपाल ने जीवन भर समाज का साथ नहीं दिया। समाज रूपी डार से टूटे हुए लोग हैं ये! फिर आज समाज उनका साथ क्यों दे?’
‘भइया सतेन्द्रपाल ने जीवन भर समाज का साथ नहीं दिया। समाज रूपी डार से टूटे हुए लोग हैं ये! फिर आज समाज उनका साथ क्यों दे?’
वे उनका बाल भी बाँका नहीं कर सकते थे। लेकिन, ऐसी प्रतीकात्मक ऑनर किलिंग से उन्हें जाने कैसा क्या संतोष मिला होगा।
मेरे हाथ में पोटली थी, जिसमें वंश की धरोहर हँसुली हार थी। कभी उस हार को देखता, तो कभी बाबू को!
चुप क्यों हैं जवाब दीजिए न...कुछ तो बोलिए...आप चली गईं क्या...आप हैं नहीं क्या? गहरी-गहरी साँसें तो सुनाई दे रही हैं!
अचानक एक अजनबी का बिना मास्क लगाए करीब बैठकर फोटो खिंचवानेवाली बात को वह चटखारे ले-लेकर देर तक सुनाता रहा...।
बरसों की घुटन शोक-संदेश से बाहर निकल–जी चाहा कोरोना की परवाह न करें...और भागकर बचपने में वापस लौट जाएँ।