कितने-कितने

वह तो एक आम नेक पुत्री-सी नित्य हाथ जोड़ पिता की आत्मा हेतु न्याय पाने हेतु नित्य प्रार्थना करती है। उसे यह नहीं ज्ञात है कि उसे कितने-कितने समय बाद न्याय मिलेगा या फिर मिलेगा भी कि नहीं!

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ब्लँकेट

उसे ब्लँकेट भेजनेवाले ज्योबाबा की, फोटो में दिखाई देनेवाले उनके घर की, ब्लँकेट की याद आई। वह व्याकुल हो गया। दुःखी हो गया। उसे लगा, वह एकदम निराधार हो गया।

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गजेंद्र की आत्महत्या

गजेंद्र कहते-कहते रोने लगा था और उसने पुनः कहा–‘भाई साहब! आप कुछ रास्ता निकालिए और मेरे परिवार को सुरक्षित कीजिए, जिससे मेरी आत्मा को सुकून मिल सके।’

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इनबॉक्स के अधूरे पन्ने

‘जानता हूँ सर, आपने ही महात्मा बुद्ध का यह कोटेशन दिया था कि अपना दीपक स्वयं बनो, लेकिन मैं आपके साथ आपके घर तक तो जा ही सकता हूँ न?’ मैं उसकी ओर देखता हूँ। स्ट्रीट लाइट में उसका चेहरा बुझा हुआ है।

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खबर

मैंने युवक से झल्लाकर कहा–‘यह क्या मजाक है।’ उसने मेरी तरफ देखकर कहा–‘यह हमारे अखबार के लिए एक सनसनीखेज खबर होगी...।’

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प्रतिध्रुव

अपने समय में ये कहानियाँ विभिन्न अखबारों में छपी थीं और वहीं दब कर रह गई। उनमें 1967 में लिखी एक ऐसी भी कहानी है, जो तब चार लेखकों ने मिलकर लिखीं थीं, जो उस समय की चर्चित पत्रिका ‘कल्पना’ में छपी थी। ‘प्रतिध्रुव’ नाम की इस कहानी को ‘नई धारा’ के पाठकों के लिए पुनः प्रस्तुत कर रहे हैं।

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