इनबॉक्स के अधूरे पन्ने

‘जानता हूँ सर, आपने ही महात्मा बुद्ध का यह कोटेशन दिया था कि अपना दीपक स्वयं बनो, लेकिन मैं आपके साथ आपके घर तक तो जा ही सकता हूँ न?’ मैं उसकी ओर देखता हूँ। स्ट्रीट लाइट में उसका चेहरा बुझा हुआ है।

और जानेइनबॉक्स के अधूरे पन्ने

खबर

मैंने युवक से झल्लाकर कहा–‘यह क्या मजाक है।’ उसने मेरी तरफ देखकर कहा–‘यह हमारे अखबार के लिए एक सनसनीखेज खबर होगी...।’

और जानेखबर

प्रतिध्रुव

अपने समय में ये कहानियाँ विभिन्न अखबारों में छपी थीं और वहीं दब कर रह गई। उनमें 1967 में लिखी एक ऐसी भी कहानी है, जो तब चार लेखकों ने मिलकर लिखीं थीं, जो उस समय की चर्चित पत्रिका ‘कल्पना’ में छपी थी। ‘प्रतिध्रुव’ नाम की इस कहानी को ‘नई धारा’ के पाठकों के लिए पुनः प्रस्तुत कर रहे हैं।

और जानेप्रतिध्रुव

मुसाफिर काकी

साधु मुस्कुरा पड़े–‘क्या फर्क है लड़की लड़का में? यह तो तुम्हारी मुसाफिर काकी थी, क्या नारी नहीं थी? तुम सबको सँभालती थी। है ऐसा कोई मर्द तुम्हारे गाँव में!’

और जानेमुसाफिर काकी

गठरी

एकाकी अम्मा को भरी-पूरी तेज रफ्तार दुनिया नहीं सुहाती, तो दुनियादारी में आपादमस्तक डूबी जानकी को अम्मा का बड़बोलापन बेतरह चुभता है.

और जानेगठरी

यशस्वी भव

अवधेश ने अपनी आँखें पोंछीं, अपने आपको स्थिर किया और प्रवीर की तरफ मुँह घुमाया। प्रवीर का स्थिर और पथराया चेहरा देखकर वह सहम गया। उसने प्रवीर को टोका,

और जानेयशस्वी भव