मुसाफिर काकी

साधु मुस्कुरा पड़े–‘क्या फर्क है लड़की लड़का में? यह तो तुम्हारी मुसाफिर काकी थी, क्या नारी नहीं थी? तुम सबको सँभालती थी। है ऐसा कोई मर्द तुम्हारे गाँव में!’

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गठरी

एकाकी अम्मा को भरी-पूरी तेज रफ्तार दुनिया नहीं सुहाती, तो दुनियादारी में आपादमस्तक डूबी जानकी को अम्मा का बड़बोलापन बेतरह चुभता है.

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यशस्वी भव

अवधेश ने अपनी आँखें पोंछीं, अपने आपको स्थिर किया और प्रवीर की तरफ मुँह घुमाया। प्रवीर का स्थिर और पथराया चेहरा देखकर वह सहम गया। उसने प्रवीर को टोका,

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काला कैक्टस और माँ

‘सबने सब कुछ तो खतम कर दिया...।’ फिर वह काला कैक्टस किसी का चेहरा बन रहा है। उसकी भारी-सी आवाज में गजब का आकर्षण हैं...। मैं परेशान होकर टूटे दरवाज़े को देखता हूँ। शैलजा और सुरभि सामान अंदर ला रही हैं।

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नेपथ्य

‘आज अचानक न जाने क्या सोचकर मैं अपने को इधर आने से रोक नहीं सका। वर्षों पुराने इस रंगमंदिर की याद तो हमेशा आती है। सोचा आज उसे देख आऊँ। लेकिन अफसोस दीवारों पर न जाने कितने सालों से रंग नहीं चढ़ा है।

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