काला कैक्टस और माँ

‘सबने सब कुछ तो खतम कर दिया...।’ फिर वह काला कैक्टस किसी का चेहरा बन रहा है। उसकी भारी-सी आवाज में गजब का आकर्षण हैं...। मैं परेशान होकर टूटे दरवाज़े को देखता हूँ। शैलजा और सुरभि सामान अंदर ला रही हैं।

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नेपथ्य

‘आज अचानक न जाने क्या सोचकर मैं अपने को इधर आने से रोक नहीं सका। वर्षों पुराने इस रंगमंदिर की याद तो हमेशा आती है। सोचा आज उसे देख आऊँ। लेकिन अफसोस दीवारों पर न जाने कितने सालों से रंग नहीं चढ़ा है।

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एक रुका हुआ फैसला

खाने की मेज पर सौजन्य, शिष्टाचार, टेबुल मैनर्स का प्रदर्शन दोनों परिवारों की ओर से जम कर हुआ। सबने अपने-अपने पत्ते सीने से सटा कर छुपाए हुए तो थे मगर कोई राज किसी से नहीं छुपा था–बेडरूम में दरवाजा बंद करके हम तीनों आपस में फुसफुसाते रहे।

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1857 : एक प्रेम कथा

भाग जाना! घर से भाग जाना...ऐसा तो उन्होंने प्रेम के उस शिखर पर भी नहीं सोचा था, जब वे मिलने के लिए रात-रात भर रोया करते थे। वे बुलाते थे, रज्जो सुनती नहीं थी। अब ऐसा क्या हुआ? ईसुरी की अनुराग-भरी आँखों में ऐसा आहत भाव उभरा कि एकदम चुप्पी-सी साधे देर तक बैठे रहे। उनके मित्र धीरे पंडा भी व्याकुल हो गए। वे जानते थे, ईसुरी ने रज्जो से ब्याह नहीं किया, गर मन से मन का वरण तो हुआ है।

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संस्कार

रंजना ने बत्ती जलायी तो पति का पीछे से गंजा हो रहा सिर परावर्तित प्रकाश में पहले से कुछ ज्यादा ही गंजा नजर आया। ‘पहले से...’ उसके मुँह में आया चुहलभरा

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