प्यार मरता नहीं
अपने ही मुहल्ले के लड़के वहाँ काम कर रहे हैं। मुझसे कह रहे थे, भइया आप मेरे साथ चलो। आप बस बैठे रहना।
अपने ही मुहल्ले के लड़के वहाँ काम कर रहे हैं। मुझसे कह रहे थे, भइया आप मेरे साथ चलो। आप बस बैठे रहना।
‘सबने सब कुछ तो खतम कर दिया...।’ फिर वह काला कैक्टस किसी का चेहरा बन रहा है। उसकी भारी-सी आवाज में गजब का आकर्षण हैं...। मैं परेशान होकर टूटे दरवाज़े को देखता हूँ। शैलजा और सुरभि सामान अंदर ला रही हैं।
‘आज अचानक न जाने क्या सोचकर मैं अपने को इधर आने से रोक नहीं सका। वर्षों पुराने इस रंगमंदिर की याद तो हमेशा आती है। सोचा आज उसे देख आऊँ। लेकिन अफसोस दीवारों पर न जाने कितने सालों से रंग नहीं चढ़ा है।
खाने की मेज पर सौजन्य, शिष्टाचार, टेबुल मैनर्स का प्रदर्शन दोनों परिवारों की ओर से जम कर हुआ। सबने अपने-अपने पत्ते सीने से सटा कर छुपाए हुए तो थे मगर कोई राज किसी से नहीं छुपा था–बेडरूम में दरवाजा बंद करके हम तीनों आपस में फुसफुसाते रहे।
भाग जाना! घर से भाग जाना...ऐसा तो उन्होंने प्रेम के उस शिखर पर भी नहीं सोचा था, जब वे मिलने के लिए रात-रात भर रोया करते थे। वे बुलाते थे, रज्जो सुनती नहीं थी। अब ऐसा क्या हुआ? ईसुरी की अनुराग-भरी आँखों में ऐसा आहत भाव उभरा कि एकदम चुप्पी-सी साधे देर तक बैठे रहे। उनके मित्र धीरे पंडा भी व्याकुल हो गए। वे जानते थे, ईसुरी ने रज्जो से ब्याह नहीं किया, गर मन से मन का वरण तो हुआ है।
रंजना ने बत्ती जलायी तो पति का पीछे से गंजा हो रहा सिर परावर्तित प्रकाश में पहले से कुछ ज्यादा ही गंजा नजर आया। ‘पहले से...’ उसके मुँह में आया चुहलभरा