नदी की उत्तर-आधुनिकता

धाराएँ सदा एक-सी नहीं होतीं कई बार उसकी ध्वनियाँ आर्त्त-नाद होती हैं सहमी तरंगों की  सूखते जल गवाह हैं

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गिरने की आवाज़

जैसे काटे गए पेड़ की जगह का ख़ालीपन एक दिन पूरी कहानी कह देता है पेड़ के बड़े होने और पत्तों से भरने की फूलने और फलने की तमाम तस्वीरें बीते दिनों की एकाएक कौंध जाती है

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भुट्टे के दानों के बीच

भुट्टे के दानों के बीच जो बह रही थी दूध की नदी वह अब इतनी पुष्ट और ठोस हो गई है कि भूख मिटा सकती है अकाल में

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रात में बदली तस्वीर

एक-एक पल जो लगता है साँस की तरह ज़रूरी कुछ ही दिनों में उसकी याद धुँधली पड़ जाती है धब्बे में बदल जैसे सालभर पहले की भादों वाली रात  या पिछली बारिश में जूतों में  पानी फैलने की ठंड

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 निराशा
बहुत सारी बात मेरी चाँदनी के शांत मन की पड़ तूफ़ानों के भँवर में दुष्ट मन के आदमी के श्याम बादल खंड में मिटने लगी हैंएक दंगा हो रहा मन के शहर में सब दुकाने लुट रही मेरी जहाँ भी और मैं मृत मीन की फैली खुली आँखों सा स्थिर हो गया हूँ

निराशा

हूँ निराशा के क्षणों को भोगता मैं अंध कूपों में पड़ा निर्जन जगत में अँधेरे में बहुत गहरा गया हूँ एक ठूँठा वृक्ष-सा सून सान टीले पर अँधेरे में घिरा…

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