तारीखें बदल रहीं
खोयी-खोयी आँखों में गहरा सन्नाटा है घर के भीतर-बाहर नागफनी का काँटा है ज्ञान न बदला सिर्फ सूचना-सीखें बदल रहींगहन उमस है
खोयी-खोयी आँखों में गहरा सन्नाटा है घर के भीतर-बाहर नागफनी का काँटा है ज्ञान न बदला सिर्फ सूचना-सीखें बदल रहींगहन उमस है
श्रम के घर रोटी के भी लाले होंगे सच के मुँह पर जड़े हुए ताले होंगे ढाही सिंह को मारेंगी गायें गाभिनसतरंजी चालें चलता रोवट होगा हिंसा के गुण गाता अक्षयवट होगा
यहाँ नहीं पनघट है, अब चौपाल नहीं है गाड़ी के पहिये के ऊपर हाल नहीं है खाक हुआ चूल्हे में जल जीवन अलाव कायहाँ न जाँता, ढेंकी, रेहट चलते देखे
चीजें हैं, पर रिश्तों की गरमाहट गायब है घर लगता घर नहीं, बना घर आज अजायब है गर्म हवा कहती है कथा ऊब की, खीजों कीविश्वग्राम के नये रंग ने रंग दिखाए हैं
मैं कितना स्पंदित था कि तुम्हें छोड़कर आसमान की तरफ़ ताकने लगा मुझे कितनों को शुक्रिया कहना था सब भूल गया!
ये घर अब लंबे अंतरालों खुलते हैं कुछ मजदूर वहाँ जमी धूल हटाते दिखते हैं एक पंडित आता है कुछ लोग जमा होते हैं रामनामी धुन दो एक दिन चलती रहती है रात को रोशनी होती है