महात्मा गाँधी के प्रति
एक योद्धा-सा चला तू, संत बन कर मर गया । अग्नि-ज्वाला-सा उठा तू, फूल होकर झड़ गया ।
दृग मिले रहें, औ होते रहें बसेरे
दृग मिले रहें, औ होते रहें बसेरे बस इसी तरह तुम रहो सामने मेरे
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