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कविता

Home » कविता » Page 101
 मेरे नयनों की वीणा पर

मेरे नयनों की वीणा पर

  • Post author:sanjay.panday
  • Post published:May 1, 1953
  • Post category:काव्य धारा
  • Post comments:0 Comments

मेरे नयनों की वीणा पर तुमने छेड़ा मल्हार रे पलकों के तारों पर मन के सातों स्वर मुखर हुए जाते,

और जानेमेरे नयनों की वीणा पर
 नया लेखक :: क्या करे बेचारा?

नया लेखक :: क्या करे बेचारा?

  • Post author:sanjay.panday
  • Post published:May 1, 1953
  • Post category:काव्य धारा
  • Post comments:0 Comments

नया लेखक क्या करे बिचारा? कोई है काँटों का रास्ता दिखाता

और जानेनया लेखक :: क्या करे बेचारा?
 भिखारी

भिखारी

  • Post author:sanjay.panday
  • Post published:February 1, 1952
  • Post category:काव्य धारा
  • Post comments:0 Comments

रहने को क्या? जहाँ पड़ गये वहीं लगा घर फटे-पुराने कपड़ों से ही अंग ढाँककर

और जानेभिखारी
 चार चिंताएँ

चार चिंताएँ

  • Post author:sanjay.panday
  • Post published:February 1, 1952
  • Post category:काव्य धारा
  • Post comments:0 Comments

जो दिल ही समुंदर लहर भावना हो कहो चाँद मेरे! रुकें ज्वार कैसे? जो तैराक को ही हो तिनका बनाए

और जानेचार चिंताएँ
 एक निमिष

एक निमिष

  • Post author:sanjay.panday
  • Post published:February 1, 1952
  • Post category:काव्य धारा
  • Post comments:0 Comments

बड़े सवेरे रोज नींद से जब मैं आँख खोल जग जाती, नन्हीं चिड़िया एक सामने आ बातें करने लग जाती।

और जानेएक निमिष
 जाड़े की धूप सुनहली

जाड़े की धूप सुनहली

  • Post author:sanjay.panday
  • Post published:February 1, 1952
  • Post category:काव्य धारा
  • Post comments:0 Comments

बाट जोहते प्राण, तुम्हारी गई विरह की रात। दुख पर सुख की मधुर पुलक-सा

और जानेजाड़े की धूप सुनहली
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