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कविता

Home » कविता » Page 104
 विदा के क्षणों में

विदा के क्षणों में

  • Post author:sanjay.panday
  • Post published:November 1, 1951
  • Post category:काव्य धारा
  • Post comments:0 Comments

रक्त भरे आँसू छलका कर प्रणयिनि! क्यों दे रही विदाई कड़वे सागर की मीठी मसोस में कितनी पीर समाई

और जानेविदा के क्षणों में
 तारों को जागते देखा है

तारों को जागते देखा है

  • Post author:sanjay.panday
  • Post published:November 1, 1951
  • Post category:काव्य धारा
  • Post comments:0 Comments

हमने अपने मृदु सपनों को, अंबर में उगते देखा है भर-रात जगत के सिर्हाने, तारों को जगते देखा है

और जानेतारों को जागते देखा है
 रोज़ शाम को

रोज़ शाम को

  • Post author:sanjay.panday
  • Post published:November 1, 1951
  • Post category:काव्य धारा
  • Post comments:0 Comments

पर कौड़ी का निपट तीन हूँ। क्या मैं इतना मूल्य हीन हूँ

और जानेरोज़ शाम को
 संकेत

संकेत

  • Post author:sanjay.panday
  • Post published:November 1, 1951
  • Post category:काव्य धारा
  • Post comments:0 Comments

मुझे पद्म-उर-दृष्टि से तुम निहारो! मुझे प्यार की बाँसुरी से पुकारो!

और जानेसंकेत
 अमर संदेश

अमर संदेश

  • Post author:sanjay.panday
  • Post published:November 1, 1951
  • Post category:विश्व-भारती
  • Post comments:0 Comments

बीत चुके इतने दिन जैसे पर कल की ही बात, नहीं मिटा पाया उस छवि को क्रूर समय का हाथ।

और जानेअमर संदेश
 प्रत्यागत

प्रत्यागत

  • Post author:sanjay.panday
  • Post published:November 1, 1951
  • Post category:काव्य धारा
  • Post comments:0 Comments

नक्षत्र-दीप तुम गौरवमय बन जगो, जलो आकाश-रंध्र में जंलमुक् प्रात: राग बनो

और जानेप्रत्यागत
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