Skip to content
नई धारा
  • गद्य धारा
  • काव्य धारा
  • कथा धारा
  • व्यंग्य धारा
  • हमारे बारे में
  • अन्य
    • संस्मरण/स्मरणइस पृष्ठ पर आपको लेख, कविताएँ, कहानियाँ, आलोचक और यात्रा वृत्तांत मिलेंगे। एक लंबा स्थापित तथ्य है कि जब एक पाठक एक पृष्ठ के खाखे को देखेगा तो पठनीय सामग्री से विचलित हो जाएगा.
    • हम इनसे मिले थे
    • स्त्री विमर्श
    • दलित विमर्श
    • भारत-भारती
    • विश्व-भारती
    • हमें यह कहना है
    • आपने यह कहा है
Menu Close
  • गद्य धारा
  • काव्य धारा
  • कथा धारा
  • व्यंग्य धारा
  • हमारे बारे में
  • अन्य
    • संस्मरण/स्मरण
    • हम इनसे मिले थे
    • स्त्री विमर्श
    • दलित विमर्श
    • भारत-भारती
    • विश्व-भारती
    • हमें यह कहना है
    • आपने यह कहा है
Search for:

कविता

Home » कविता » Page 107
 जीवन का व्यापार

जीवन का व्यापार

  • Post author:sanjay.panday
  • Post published:September 1, 1951
  • Post category:काव्य धारा
  • Post comments:0 Comments

बीत गए जो दिन, उनका है आँसू ही आभार! सखि, यह जीवन का व्यापार!

और जानेजीवन का व्यापार
 अफ्रीका

अफ्रीका

  • Post author:sanjay.panday
  • Post published:September 1, 1951
  • Post category:भारत-भारती
  • Post comments:0 Comments

उस पागलपन-भरे आदिम युग में जब विधाता खुद अपने से असंतुष्ट होकर

और जानेअफ्रीका
 भोर के बादल

भोर के बादल

  • Post author:sanjay.panday
  • Post published:August 1, 1951
  • Post category:काव्य धारा
  • Post comments:0 Comments

घिर आईं अँखियन में बदरिया भोर की

और जानेभोर के बादल
 जय वसुंधरे!

जय वसुंधरे!

  • Post author:sanjay.panday
  • Post published:August 1, 1951
  • Post category:काव्य धारा
  • Post comments:0 Comments

यह धरती अधिवास युगों से यही हमारी परिजन फूले-फले कि जैसे मधुवन क्यारी

और जानेजय वसुंधरे!
 राही और मंजिल

राही और मंजिल

  • Post author:sanjay.panday
  • Post published:August 1, 1951
  • Post category:काव्य धारा
  • Post comments:0 Comments

उषा में ही क्यों तुम निरुपाय

और जानेराही और मंजिल
 चाँदनी

चाँदनी

  • Post author:sanjay.panday
  • Post published:August 1, 1951
  • Post category:काव्य धारा
  • Post comments:0 Comments

भरी आँख है भरी चाँदनी। नई-नई आँखों का पानी

और जानेचाँदनी
  • Go to the previous page
  • 1
  • …
  • 104
  • 105
  • 106
  • 107
  • 108
  • 109
  • 110
  • Go to the next page

Recent Posts

  • किस तरफ निकले थे
  • कभी महसूस होता है
  • तुझको दिल में बसा लिया मैंने
  • मेला उदास हैं न
  • ज़िंदगी हम तेरा रस्ता देखते हैं

Recent Comments

  • उदय राज सिंह स्मृति सम्मान से सम्मानित लेखकों के व्याख्यान - नई धारा on ‘स्त्री जितना दिखती है, सिर्फ उतनी भर ही नहीं होती’–सूर्यबाला
  • वातभक्षा - नई धारा on वातभक्षा
  • व्यंग्यकार प्रेम जनमेजय से बातचीत - नई धारा on नई धारा संवाद : सूर्यबाला (कथा-लेखिका)
  • भारत और भारतीयता पर विचार | article on nationalism by shatrughan prasad on कभी मनुहार, कभी फटकार!
Copyright - OceanWP Theme by OceanWP

WhatsApp us