Skip to content
नई धारा
  • गद्य धारा
  • काव्य धारा
  • कथा धारा
  • व्यंग्य धारा
  • हमारे बारे में
  • अन्य
    • संस्मरण/स्मरणइस पृष्ठ पर आपको लेख, कविताएँ, कहानियाँ, आलोचक और यात्रा वृत्तांत मिलेंगे। एक लंबा स्थापित तथ्य है कि जब एक पाठक एक पृष्ठ के खाखे को देखेगा तो पठनीय सामग्री से विचलित हो जाएगा.
    • हम इनसे मिले थे
    • स्त्री विमर्श
    • दलित विमर्श
    • भारत-भारती
    • विश्व-भारती
    • हमें यह कहना है
    • आपने यह कहा है
Menu Close
  • गद्य धारा
  • काव्य धारा
  • कथा धारा
  • व्यंग्य धारा
  • हमारे बारे में
  • अन्य
    • संस्मरण/स्मरण
    • हम इनसे मिले थे
    • स्त्री विमर्श
    • दलित विमर्श
    • भारत-भारती
    • विश्व-भारती
    • हमें यह कहना है
    • आपने यह कहा है
Search for:

कविता

Home » कविता » Page 108
 प्रबोध

प्रबोध

  • Post author:sanjay.panday
  • Post published:August 1, 1951
  • Post category:काव्य धारा
  • Post comments:0 Comments

जागो निद्रा-तंद्रा के कर बिके हुए बेमोल! उड़ी सुरभि सब ओर भोर के सरसिज-संपुट खोल!!

और जानेप्रबोध
 किरण और कुटीर

किरण और कुटीर

  • Post author:sanjay.panday
  • Post published:August 1, 1951
  • Post category:काव्य धारा
  • Post comments:0 Comments

सारे जीवन की कलाराधना मेरी, विज्ञान, ज्ञान का सब तन्मय अन्वेषण

और जानेकिरण और कुटीर
 कुछ रात गए, कुछ रात रहे

कुछ रात गए, कुछ रात रहे

  • Post author:sanjay.panday
  • Post published:April 1, 1951
  • Post category:काव्य धारा
  • Post comments:0 Comments

कुछ रात गए, कुछ रात रहे जब सहसा नींद उचट जाती

और जानेकुछ रात गए, कुछ रात रहे
 नत-मस्तक हूँ

नत-मस्तक हूँ

  • Post author:sanjay.panday
  • Post published:April 1, 1951
  • Post category:काव्य धारा
  • Post comments:0 Comments

नत-मस्तक हूँ, पद-नख धर दो।

और जानेनत-मस्तक हूँ
 वृद्धत्व

वृद्धत्व

  • Post author:sanjay.panday
  • Post published:April 1, 1951
  • Post category:काव्य धारा
  • Post comments:0 Comments

कौन कहता है कि तुम वृद्धत्व मेरे पास आए!

और जानेवृद्धत्व
 विश्वराज्य

विश्वराज्य

  • Post author:sanjay.panday
  • Post published:April 1, 1951
  • Post category:काव्य धारा
  • Post comments:0 Comments

जगती, तेरे सभी हम, जननी, तेरी जय है; विश्वराज्य के लोकतंत्र में किसको किसका भय है?

और जानेविश्वराज्य
  • Go to the previous page
  • 1
  • …
  • 105
  • 106
  • 107
  • 108
  • 109
  • 110
  • Go to the next page

Recent Posts

  • किस तरफ निकले थे
  • कभी महसूस होता है
  • तुझको दिल में बसा लिया मैंने
  • मेला उदास हैं न
  • ज़िंदगी हम तेरा रस्ता देखते हैं

Recent Comments

  • उदय राज सिंह स्मृति सम्मान से सम्मानित लेखकों के व्याख्यान - नई धारा on ‘स्त्री जितना दिखती है, सिर्फ उतनी भर ही नहीं होती’–सूर्यबाला
  • वातभक्षा - नई धारा on वातभक्षा
  • व्यंग्यकार प्रेम जनमेजय से बातचीत - नई धारा on नई धारा संवाद : सूर्यबाला (कथा-लेखिका)
  • भारत और भारतीयता पर विचार | article on nationalism by shatrughan prasad on कभी मनुहार, कभी फटकार!
Copyright - OceanWP Theme by OceanWP

WhatsApp us