हमारे कृषक
दूध-दूध गंगा तू ही अपनी पानी को दूध बना दे दूध-दूध उफ् कोई है तो इन भूखे मुर्दों को जरा मना दे दूध-दूध दुनिया सोती है लाऊँ दूध कहाँ से किस घर से दूध-दूध हे देव गगन के कुछ बूँदें टपका अंबर से
दूध-दूध गंगा तू ही अपनी पानी को दूध बना दे दूध-दूध उफ् कोई है तो इन भूखे मुर्दों को जरा मना दे दूध-दूध दुनिया सोती है लाऊँ दूध कहाँ से किस घर से दूध-दूध हे देव गगन के कुछ बूँदें टपका अंबर से
फ़लसफ़े और भूख विलोम शब्द हैं एक दिन सभी फ़लसफ़ों को सड़कों पर ले जाएँगे और देखेंगे झोपड़ा फटा ब्लाउज़ और कैसे भूख फ़लसफ़ों को खाने के लिए मजबूर है फ़लसफ़े की कतरन ब्लाउज़ पर चिपका बचे हिस्से को जाड़ा ओढ़ लेगा
लगभग देहात और लगभग बीहड़ के बीच से वह लगभग कस्बा आया था और उसे यह कस्बा लगभग से आगे बढ़ पूरा का पूरा शहर लगा था
अभिनेता अभिनय करते-करते मृत्यु का मंचन करने लगता है आप उन्मत्त होते हैं अभिनय देख पीटना चाहते हैं तालियाँ मगर इस बार वह नहीं उठता क्योंकि जीवन के रंगमंच में एक ही ‘कट-इट’ होता है
कैक्टस, तुम कितने अच्छे हो मेरे पिता की तरह! वरना हज़ारों काँटों की चुभन को सहकर मुस्कुराते हुए खिलना इतना आसान है क्या?
कभी-कभी बेवजह ही उग जाती है घास पत्थर के सख्त शरीर पर बेवजह ही खिल कर गिर जाते हैं हरसिंगार बेवजह ही शोर मचाता है समंदर बेवजह ही बरस जाते हैं