जहाँ भी रहूँ
पुरखों के शरीर का नमक गिरा है यहाँ मैं यहीं पैदा हुआ और पिता की उँगली पकड़कर दुनिया के रास्तों पर आया माँ लकड़ी के चूल्हे पर खाना बनाती थी लीपे हुए आँगन में बैठकर सब साथ खाते थे
पुरखों के शरीर का नमक गिरा है यहाँ मैं यहीं पैदा हुआ और पिता की उँगली पकड़कर दुनिया के रास्तों पर आया माँ लकड़ी के चूल्हे पर खाना बनाती थी लीपे हुए आँगन में बैठकर सब साथ खाते थे
एक बार सब्जियों की हाट में उसने अच्छे प्याज छाँटने में मेरी मदद की थी इससे ज्यादा का कोई वास्ता नहीं रहा मेरा उससे जब तीन साल पहले वह अचानक
गरीब बच्चों का बना रहेगा चंदा मामा और वक्त जरूरत सोने की कटोरी में दूध-भात लेकर हाज़िर होता रहेगाउसके होने से चार दिन की ही सही आती रहेंगी चाँदनी रातेंचाँदनी में नहाती रहेगी धरती चाँदनी हमारे सपनों में उजास भरती रहेगी
हे मेरे प्रिय! मेरे नाक का सिंगार है ‘नकबेसर’ नाक की शोभा चली गई तो क्या होगा कैसे मुँह दिखाऊँगी छुपाऊँगी भी तो कैसे जल्दी करो प्रिय! कौवे से नकबेसर ले लाओ
पंद्रह अगस्त सन् सैंतालिस को भारत को आज़ादी मिली लोकतांत्रिक राष्ट्र-राज्य बना और अमृत महोत्सव मना रहा है यानी, आज़ादी के 75 वर्ष पूरे करके शताब्दी वर्ष की ओर बढ़ रहा है
तलवार हमारी है निर्भय आज़ाद कलम हम लड़ते आए ज़ोर-जुल्म से जनम-जनम हम निर्बल का संन्यास बदलने वाले हैं हम तो कवि हैं, इतिहास बदलने वाले हैं