कवि

मैं कवि हूँ मेरी अपनी मज़बूरी है मैं ‘पसंद’ को ‘पसंद’ नहीं लिख सकता मैं ‘प्यार’ को ‘प्यार’ नहीं लिख सकता मुझे ‘प्यार’ लिखने के लिए खोजने पड़ते हैं नए नए शब्द गढ़नी पड़ती हैं नई नई परिभाषाएँ

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प्रेेम

मैंने प्रेम किया और चाहा कि आज़ाद ही रहूँ यानी मैंने खुद में और प्रेम में खुद को चुना, सुविधा चुनी, आजादी चुनी उसी वक्त, उसने प्रेम किया

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पेड़

मिट्टी को मजबूती से पकड़े हैं पेड़ इतनी मजबूती से कि पानी का प्रचंड वेग भी उसे हिला तक नहीं पाता मिट्टी की भी उतनी ही रक्षा करता है पेड़ कटान को रोककर स्वयं की जितनी पेड़ की जड़ें

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सदगति

भूखे-प्यासे दो जून की रोटी का आँखों में सपना पाले वह सुबह से दोपहर तक नाचता रहा यह बोल सुनते हुए–‘तनख्वाह देते हैं काम तो करना ही पड़ेगा मर कर करे या जी कर।’

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जीवन कितना सुंदर है

ना, इन फूलों पर न बनेगा मन-मधुकर मतवाला! अब न पियेगा स्वप्न-सुरभि– मदिरा का मादक प्याला!! काँटों में उलझा देना जीवन कितना सुंदर है!

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मेरी उम्र के लड़के

रोज क्लास से लॉज की दूरी में नौकरी से इंटरव्यू देने तक को सोचते जाते हैं लड़के लड़के, रात तक पूरा डेटा खर्च करने के बाद अपने सबसे धनी दोस्त को ‘तुम’ में संवादित कर

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