मैं अंडमान हूँ

ऐसी ही काल कोठरी में सावरकर भी तो बंद हुएवहीं कील से लिख करकेक्रांति ज्वाल के छंद दिए।ऐसे ही कितने वीरों नेभोगा उस काला पानी

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ये दिल माँगे मोर

रोम-रोम में राम बसा करते थे पहलेअब तो केवल रोम-रोम है, राम कहाँ हैराजधानियों में हैं गोरी और गजनबीश्रद्धा के मंदिर

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पलने लगी

चढ़ने लगा है भाव भी बाज़ारे-इश्क़ में छूने को आसमान चलीं क़ीमतें नई हमने लगा दी जान मिटाने में दूरियाँ अब मत बनाओ यार मेरे सरहदें

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चित्रशाला

पानी बह चुके गंगा के कितने बहने को बाकी हैं कितने दृश्य अनगिनत उपस्थित करते हुए फिर उन्हें गायब करते हुए सूरज कितनी ही बार उग चुका

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नफ़रत है मुझे

जल जंगल जमीन को बचाने की बात नहीं कर सकता आदिवासी दलित पिछड़ों के अधिकारों की बात नहीं कर सकता महिला के सम्मान की बात नहीं कर सकता ऐसे पद पर रहने से नफ़रत है मुझे

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बूढ़ी माँ का नौजवान बेटा

यह वही गाड़ी है जिस गाड़ी में हत्या करके लाए थे रात के ग्यारह बजे बूढ़ी माँ के नौजवान बेटे कोकहीं से नहीं दिखाता ख़ुद को हत्यारा सभी झूठों को इक्कठा करके ख़ुद को कर लिया

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