प्रश्न के जवाब

रौशनदान में रह रही गौरैया ने घोंसले के तिनकों में छोड़ा है एक प्रश्न अँधियारी रात में शहर के भय भरे एकांत में छिपी लड़कियों ने माँगा है जवाब अपने कुचले गए वजूद का पानी में भीगती, जाड़े में ठिठुरती

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माँ ने कहा था

माँ ने कहा था बेटी, घर-परिवार में सबके खाने के बाद ही खाना बड़ों की किसी बात का जवाब मत देना ससुराल में नौकर तक को आप कहकर बुलाना माँ ने कहा था बेटी, कुल की लाज रखना पति की लंबी आयु के लिए तीज-त्योहार में व्रत रखना

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यथार्थ

मैं पी रही थी चाय कुर्सी पर बैठी और वो बग़ल में ज़मीन पर पूरी दुनिया पसारे मैं लिखा-पढ़ी में व्यस्त तो उसका मन अटका हुआ था पाप-पुण्य में अगले सातों जनम को सुखमय

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ख़ारिज

बह रहे हैं शव काल के प्रवाह में इतने लोग मर रहे हैं कि नमन श्रद्धांजलि दुआ सबके सच्चे मायने खो गए लगता है अपने आँसू और दूसरों के आँसुओं को ओढ़कर बैठी-बैठी मैं नमक का ढूह बन गई हूँ

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भोर गीत

सूरज ने किरण-माल डाली कानों तक फैल गयी लाली क्षितिजों का उड़ गया अँधेरा फैल गया सिंदूरी घेरा गीतों ने पालकी उठाली जाग गईं दूर तक दिशाएँ बाहों-सी खुल गईं हवाएँ

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जंगल में रात

चाँदी की चोंच थके पंखों के बीच दिए पड़कुलिया झील सो गई जंगल में रात हो गई शंखमुखी देह मोड़कर ठिगनी-सी छाँह के तले आवाजें बाँधते हुए चोर पाँव धुँधलके चले

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