सावनी उजास

हाथों में फूल ले कपास के स्वर झूले सावनी उजास के पागल-सी चल पड़ी हवाएँ मंद कभी तेज झूल रही दूर तक दिशाएँ यादों की चाँदनी सहेज

और जानेसावनी उजास

सांध्य गीत

टूट गई धूप की नसैनी तुलसी के तले दिया धर कर एक थकन सो–गई पसर कर दीपक की ज्योति लगी छैनी आँगन में धूप-गंध बोकर बिखरी चौपाइयाँ सँजोकर

और जानेसांध्य गीत

रुआँसे चेहरे वाले लोग

वे चाहते हैं हमारी चुप्पी, हमारे कत्ल पर... उन्हें पसंद नहीं मरते हुए लोगों के शोर वे मुस्कान देखना चाहते हैं हमारे चेहरे पर, जब चले छुरी गले पर और हमारी साँस-नली कट जाए, एक फट की

और जानेरुआँसे चेहरे वाले लोग

वापसी

कविता सीधे रास्ते नहीं चलती…. कविता राजमार्गों को छोड़, राहमापी करती है गलियों, पगडंडियों धूलभरी बस्तियों की। कविता पसीने की गंध में मिलाती है गर्म रोटी की महक।

और जानेवापसी

कविता

कविता पसीने की गंध में मिलाती है गर्म रोटी की महक। कविता चूल्हे पर उठती भाप से मापती है भूख का तापमान। कविता घृणा की परतों को उधेड़ प्रेम पर अपनी मुहर लगाती है

और जानेकविता

वापसी की यात्रा

वापसी की यात्रा उम्मीदों से भरी होती है प्रकाश, प्रेम और ‘थकान से मुक्ति’ के जश्न की कामना लिए वापसी की यात्रा हमेशा छोटी होती है गमन की यात्रा से।

और जानेवापसी की यात्रा