स्वाभाविक ही
शोषण की ओर जाते हैं समाज प्रेम में छुअन की भूमिका को छिपा रहा है मंदिर में रखी मूर्ति के पीछे और किसी पुरानी किताब के पीछे हमें पता है
शोषण की ओर जाते हैं समाज प्रेम में छुअन की भूमिका को छिपा रहा है मंदिर में रखी मूर्ति के पीछे और किसी पुरानी किताब के पीछे हमें पता है
रंग सकता था दीवाल को भी हरा, सफेद, काला या कोई भी रंग जो उसके पास होता रंग नहीं होता तो रंग सकता था सड़क से समेटकर धूल का भूरा रंग
उन्हें मालूम है कि भीड़ का होना इस दुनिया का होना है भीड़ जो बनती है इस मुल्क में वतन की लौ जैसे मशालें जलती हैं धरती के इस कोने
जड़ हो या चेतन दिखा तो नहीं कोई जिसमें प्यास न हो। गुजर कर तो देखो पत्थरों के पास से थोड़ी भीगी-सी सहलाने की आहट लिए।
मुझे रहने दो थमा कितनी गतिशीलता है इसमें!सँभालो, सँभालो मेरे अभी-अभी आए पंखों को इनकी मासूम उड़ान को।मत कुतर देना इन्हें कविता समझ अरे, ओ, हतभागी निषाद।
नहीं रहा मैं कभी ठहर कर अतीत में या वर्तमान में ही।रहा हूँ सदा भविष्य में भले ही जीते हुए वर्तमान में।