रहिमन पानी राखिये
‘रहिमन पानी राखिये बिन पानी सब सून’ कभी कहा था रहीम बाबा ने फिर भी पानी को बेपानी किया गया बेहिसाब
‘रहिमन पानी राखिये बिन पानी सब सून’ कभी कहा था रहीम बाबा ने फिर भी पानी को बेपानी किया गया बेहिसाब
तुम्हारे डिक्सनरी से हटता क्यों नहीं पर, किंतु, परंतु जैसे कई बड़े-बड़े शब्द। कलम चलाते चलाते अक्सर रुक जाते हैं तुम्हारे हाथ कलम पर उँगलियाँ फिराते गोल-मटोल घुमाने लगते हो तुम्हारे वो मकसदी बात।
बेटियाँ हैं तो बीमार माँ के सिरहाने टेबुल पर सज जाती है दतवन, कंघी, दवाई, गमछा और लोटा भर सुसुम पानी।
न आँगन में चहलकदमी करते वीरान पड़ी मरुभूमि में हरियाली, बगिया में कोयल की कूक पक्षियों का चहकना बच्चों की किलकारियाँ, उग आए हैं…
जल जंगल जमीन हमारा रक्षक हैं हम जंगल पहाड़ों का हमारे अंदर जंगल उजड़ने का दर्द चीख-चीख कर बयाँ कर रही है तुम्हारी दरिंदगी के किस्से
रात के आवारा मेरी आत्मा के पास भी रुको मुझे दो ऐसी नींद जिस पर एक तिनके का भी दबाव ना होऐसी नींद