मंच से

शोर और रोशनी की ओर बढ़ती है  डरी हुई जनता  खड़े होते हैं हाथ और लाठियाँ  खड़ी होती है डरी हुई भयावह जनताडरी हुई भीड़ बड़ी भयानक होती है 

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रामलीला के बाद घर लौटता रावण

उसने नहीं हरी कोई सीता और मनाता है रोज़ राम को  अट्टहास करता है सिर्फ़ स्टेज पर  धीरे बोलने वाला हमारा रावण बहुत प्रेम करता है पत्नी से  और बच्चों से  इसीलिए रोज़ जाता है, अपने भगवान से लड़ने मैदान में

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जीवित है प्रेम

उसी तरह  जिस तरह  मन नहीं मानता  हिचकियों को एक  नैसर्गिक क्रिया,  वह रखता है विश्वास  कि कोई आज भी  कर रहा है उसे याद।उसी तरह  जिस तरह  समाज का एक बड़ा वर्ग  नहीं मानता कि  ईश्वर नहीं है, 

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तुमसे मिलकर

धरा अत्यधिक अकेली होती है  क्षितिज पर,  क्योंकि वहाँ मान लिया जाता है  उसका मिलन नभ से।भँवरा भी तब तक  नहीं होता तन्हा  जब तक आकर्षित नहीं होता  किसी फूल से।

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सरयू नदी, पानी…और संगीत

माथे पर सरयू नदी का जल छिड़क  शुरू किया पंडित ने पूजन पेड़ों की पूजा कराई हवा ने साथ दिया बहनों ने आँखों में आसूँ लिए गालों पर चुम्बन जड़ दिए।

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