अरसे बाद

न आँगन में चहलकदमी करते वीरान पड़ी मरुभूमि में हरियाली, बगिया में कोयल की कूक पक्षियों का चहकना बच्चों की किलकारियाँ, उग आए हैं…

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कितने रूप हैं तुम्हारे

जल जंगल जमीन हमारा रक्षक हैं हम जंगल पहाड़ों का हमारे अंदर जंगल उजड़ने का दर्द चीख-चीख कर बयाँ कर रही है तुम्हारी दरिंदगी के किस्से

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