ओम शांति

शान से छिपी बैठी थी वह भूख को पछाड़ते एक रोटी के टुकड़े में, उसे निहारती आँखों में उमड़ते उम्मीद के सागर में!मैंने बढ़ाए कदम बहुत हौले, करने को धप्पा, वह दौड़ पड़ी चंचल बच्ची-सी मुग्ध हँसती, देती चुनौती।

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बंधु! जरूरी है मुझको घर लौटना

बंधु! जरूरी है मुझको घर लौटना, एक मुझे भी ले लो अपनी नाव पर। देर तनिक हो गई वहीं, बाजार में, मोल-तोल के भाव और व्यवहार

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प्यार

ऊँचाई पर बने आधी दीवार वाले फुटपाथों के आसमान को गले लगाते हम पहुँचते सिनेमाघर के भीतर अगर मैटिनी शो के अँधेरे में मैंने प्यार किया

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