एक नन्ही चाबी
किसी के जनेऊ में बँधी है चाबी किसी किसी के पल्लू में बँधी है एक नहीं, दो नहीं, कई-कई चाबियाँ मैं कहाँ रखूँ तुम्हारी दी हुई एक नन्ही चाबी?
किसी के जनेऊ में बँधी है चाबी किसी किसी के पल्लू में बँधी है एक नहीं, दो नहीं, कई-कई चाबियाँ मैं कहाँ रखूँ तुम्हारी दी हुई एक नन्ही चाबी?
वे कविताएँ जो किसी संग्रह में नहीं हैं वे सब तुम्हारे पास हैं। वे सब रहेंगी तुम्हारे पास मेरे पास भी नहीं किसी के पास नहीं।
दर्द पिछले दरवाजे से आता है और अगले दरवाजे़ से निकल जाता है लेकिन कभी-कभी वह रुक जाता है सुबह जाऊँगा, नहीं शाम जाऊँगा कहता आज नहीं, कल जाऊँगा।
दूध-दूध गंगा तू ही अपनी पानी को दूध बना दे दूध-दूध उफ् कोई है तो इन भूखे मुर्दों को जरा मना दे दूध-दूध दुनिया सोती है लाऊँ दूध कहाँ से किस घर से दूध-दूध हे देव गगन के कुछ बूँदें टपका अंबर से
फ़लसफ़े और भूख विलोम शब्द हैं एक दिन सभी फ़लसफ़ों को सड़कों पर ले जाएँगे और देखेंगे झोपड़ा फटा ब्लाउज़ और कैसे भूख फ़लसफ़ों को खाने के लिए मजबूर है फ़लसफ़े की कतरन ब्लाउज़ पर चिपका बचे हिस्से को जाड़ा ओढ़ लेगा
लगभग देहात और लगभग बीहड़ के बीच से वह लगभग कस्बा आया था और उसे यह कस्बा लगभग से आगे बढ़ पूरा का पूरा शहर लगा था