कवि की आत्महत्या
अभिनेता अभिनय करते-करते मृत्यु का मंचन करने लगता है आप उन्मत्त होते हैं अभिनय देख पीटना चाहते हैं तालियाँ मगर इस बार वह नहीं उठता क्योंकि जीवन के रंगमंच में एक ही ‘कट-इट’ होता है
अभिनेता अभिनय करते-करते मृत्यु का मंचन करने लगता है आप उन्मत्त होते हैं अभिनय देख पीटना चाहते हैं तालियाँ मगर इस बार वह नहीं उठता क्योंकि जीवन के रंगमंच में एक ही ‘कट-इट’ होता है
कैक्टस, तुम कितने अच्छे हो मेरे पिता की तरह! वरना हज़ारों काँटों की चुभन को सहकर मुस्कुराते हुए खिलना इतना आसान है क्या?
कभी-कभी बेवजह ही उग जाती है घास पत्थर के सख्त शरीर पर बेवजह ही खिल कर गिर जाते हैं हरसिंगार बेवजह ही शोर मचाता है समंदर बेवजह ही बरस जाते हैं
बड़े शहरों में फुटपाथ से चिपक कर नाली के बगल की झोपड़पट्टी में या किसी ओवर ब्रिज के नीचे शैवाल की तरह जी रहे लोगों को देखकर तुम्हें दुख तो होता है न, कवि?
धधकती आग पर पाँवों को चलना खूब आता है हमें मुश्किल दिनों से भी निकलना खूब आता है हमारी चुप को कमज़ोरी समझकर भूल मत करना लहू को सूर्ख लावे में बदलना खूब आता है
पल पल रंग बदलते देखे हमने अपनी आँखों से चेहरे पर भी चेहरे देखे हमने अपनी आँखों से अखबारों में छपा हुआ है, कुछ भी नहीं हुआ लेकिन बस्ती के घर जलते देखे हमने अपनी आँखों से