उसकी लिखावट

उसने खूब लिखा स्त्री को खूब पढ़ा स्त्री को खूब बिके किताब खूब लगाए नारे पर सुना है आजकल वह लिखना-पढ़ना भूल सा गया है क्योंकि उसकी खुद की स्त्री ने

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बोझ

पैर थक जाते हैं घुटने जवाब दे जाते हैं झुक जाती है कमर पर कितना ढीठ है यह आदम जात लँगड़ाते हुए घसीटते हुए वह मोह-माया में लिपटा हुआ अपनी लालसा की गठरी

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रोबोट बनता नया साल

दीवारों पर टँगते नहीं कैलेंडर मशीनों में बंद हो जाती हैं तारीख़ें फिर भी हर बार की तरह फिर परिवर्तन का ढोल बजाते रोबोट बना आएगा नया साल।

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देवता का दैत्य?

मैं आज़ाद हूँ, जिसका होना खतरनाक है ‘उम्मीद’ महज़ शब्द से अधिक कुछ नहीं है चीज़ों के हो जाने से फ़र्क पड़ना ही बंद हो गया अब मेरे लिए जिया जाना भी बोझ है

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पहली भाषा

और मुझसे हर बार यही गलती हुई मैंने नई भाषा को हमेशा पुरानी भाषा से सीखने की कोशिश की इस्तेमाल किया पुरानी भाषा के व्याकरण को नई भाषा में और वक्त के साथ या तो भाषा ने मुझे या मैंने भाषा को अधूरा छोड़ दिया।

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चक्र

प्रेमिकाएँ, करती हैं मदद पूर्व-प्रेयसियों को भुला देने में और फिर चली जाती हैं एक नई स्त्री के माथे ये जिम्मा सौंपकर प्रेमी, उद्विग्न हो जाते हैं पूर्व-प्रेमी के सिर्फ़ नाम ही से

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