मैं हूँ हवा

मैं हूँ एक हवा का झोंका मस्ती से मेरा अनुबंध इधर चली अब उधर उड़ी इतने से मेरा संबंध।मेरा कोई आकार नहीं है न मेरा है कोई रंग दामन में निज खुशबू समेटे मैं तो हूँ औघर अनंग।मलयानिल बन कभी चलूँ मैं सबको बाँटूँ विपुल उमंग हिमगिरि से जब मैं नीचे उतरूँ लाऊँ शीतलता अपने संग।

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आजकल जल्दी ही थक जाते हैं

आजकल जल्दी ही कुछ कदमों पर ही थकने लगते हैं... एहसास, जज्बात संबंध और साथकिसी अंधी होड़-दौड़ की तेज चाल के साथ नहीं मिल पाती कदम तालतारी होने लगता है अहम घुसपैठ करने लगता है स्वार्थ

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शब्दों की बारात

जब ढेरों संवाद अकुला रहे होते हैं अव्यक्त मानस में कर रहे होते हैं संवाद निरंतर भीतर ही भीतरजिनकी कानों को भी नहीं लग पाती भनक वे दमित शब्द और उनका मौन चिंघाड़ता हुआ प्रकट होता है कविता मेंऔर कविता होती है उन चिंघाड़ते हुए शब्दों की बारात...

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शर्मनाक हादसों के गवाह

हम जो अपने समय के सबसे शर्मनाक हादसों के गवाह लोग हैं हम जो अपने समय की गवाही से मुकरे डरे, सहमे, मरे से लोग हैं।

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प्रेम से ही उपजते हैं

लिखा जा रहा है बहुत कुछ पर मैं लिखती रहूँगी सिर्फ प्रेम क्योंकि मुझे पता है दुनिया के सारे विमर्श प्रेम से ही उपजते हैं और एक खूबसूरत दुनिया को बचाये रखने के लिए बहुत जरूरी है हमारा प्रेम में पड़े रहना।

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कभी तो टोह लेते

कभी तो टोह ली होती उस मन की सुना होता अंतर्नाद जो गूँजता रहा निर्बाध आपादमस्तक अनसुना सा रहा आदि काल से दमित, तिरस्कृत, विदग्ध सदियों तक...कभी तो खोलते ग्रंथियाँ बंद मुट्ठियाँ जिनमें उकेरे गए थे सिर्फ शून्य रेखाएँ तो उभर आई थीं परंतु केवल भाल पर सिलवटें बन...

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