यार जुलाहे

यार जुलाहे मुझे भी सिखा दे चुनना और बुनना। कैसे चुनता है तू एक-एक धागा कैसे बुनता है तू सुंदर चदरिया।तू मुझे ये भी सिखा क्या बुनने से ज्यादा अहम है चुनना। मैं भी चाहता हूँ बुनना एक कविता जिसमें हो प्रेम की कढ़ाई भावों की तुरपाई संवेदनाओं की सीवन और सुंदर सा जीवन। पर मैं बुन नहीं पाता

और जानेयार जुलाहे

मैं पत्रकार हूँ

मैं पत्रकार हूँ! शब्द हैं मेरी आत्मा और खबर मेरी आवाज मस्तिष्क मेरा संपादकीय समीक्षा मेरी आँख! फीचर मेरे कान हैं विश्लेषण मेरी नाक मैं सच और झूठ का जानकार हूँ मैं पत्रकार हूँ!

और जानेमैं पत्रकार हूँ

सावधान-सावधान

बाँध-पुल और सड़कों के नाम पर अंधी दौड़ दौड़ोगे मैं फिर नोचूँगी तुम्हारा चेहरा और फिर छोड़ूँगी ऐसे ही निशान! सावधान! सावधान!

और जानेसावधान-सावधान

मन में संदूक

मैंने मन के कोने में एक संदूक छिपा रखी है दिन प्रतिदिन होती जा रही है यह और भी भारी इसमें है कुछ शब्द जो हर बार कहने पर भी बात रह जाती है अधूरी

और जानेमन में संदूक

आश्वस्ति के बादल

नष्ट कर दिए गए हैं आश्वस्ति के बादल नहीं जाना उस राह मुझे जहाँ है सिर्फ अनुरक्ति के दलदल मौन हूँ विच्छेद हूँ सब रिश्तों से विभेद हूँ समय ने तोड़ा अपनो से झंझोड़ा-मोड़ा फिर भी, मैं सब से जुड़ी रही तुम्हें मन ही मन गुनती रही

और जानेआश्वस्ति के बादल