यार जुलाहे
यार जुलाहे मुझे भी सिखा दे चुनना और बुनना। कैसे चुनता है तू एक-एक धागा कैसे बुनता है तू सुंदर चदरिया।तू मुझे ये भी सिखा क्या बुनने से ज्यादा अहम है चुनना। मैं भी चाहता हूँ बुनना एक कविता जिसमें हो प्रेम की कढ़ाई भावों की तुरपाई संवेदनाओं की सीवन और सुंदर सा जीवन। पर मैं बुन नहीं पाता