उसकी याद
जब मैं उसे याद कर रहा होता हूँ तो क्या उसे पता भी होता है कि मैं उसे याद कर रहा हूँ
जब मैं उसे याद कर रहा होता हूँ तो क्या उसे पता भी होता है कि मैं उसे याद कर रहा हूँ
उस दिन के बाद मैंने कुछ भी रचने की कोशिश नहीं की मेरे भीतर झरती हुई बारिश तब से लगातार रच रही है मुझे!
उसने तो यही कहा था उसकी रूह मेरी थी मेरे जिस्म की वो मालिक थी इश्क का टाइप कुछ भी कहे दुनिया मगर फिर भी था तो...इश्क ही
तेरी यादों से बुनता हूँ रोज ये लबादा जाने वाले तुम... आखिर याद ही क्यों आते हो!
गुलों की पंखुड़ियों से भँवरों की खिलवाड़ जारी है अरब के हैं इत्र बेमिसाल लेकिन उनकी देह की गंध न्यारी है
जो दे नहीं सकती किसी मुँह को निवाला मेरा वजूद है चाँद हो जाना... और तपते दिन को सुकून दे जाना