बारहखड़ी
एक पूरी, धकापेल तू भी क्यों नहीं चढ़ गया एक नक़द बारहखड़ी तू भी क्यों नहीं पढ़ गया? ‘मन पछितैहें अवसर बीते’
एक पूरी, धकापेल तू भी क्यों नहीं चढ़ गया एक नक़द बारहखड़ी तू भी क्यों नहीं पढ़ गया? ‘मन पछितैहें अवसर बीते’
‘ओ बेपीर पीर, मैं हारी जाने दे, मैं हूँ अधमारी।’ भर बाजार अदालत सारी चाट रहे हैं ठग-पिंडारी!
जैसी कद-काठी हो वैसी ही लाठी हो वासुदेव! वासुदेव बातों की देवी को लातों की पड़ी टेव!
इच्छाएँ पूरी होने के दिन होते हैं अनाज फटके जाने के दिनऔरतें बाकायदा गीत गा रही होती हैं आपस में सपने बतिया रही होती हैं
तू अकेली है तो क्या... तू जमीन बन/तू आसमान बन तू शिखर बन/तू हवा बन बह