नदी नहीं बहती

खूब नहाते थे उसमें जब पानी का बहाव कम होता था चरती थी नदी के ढावा के ऊपर हमारी बकरियाँ गायें, भैंसें और हम सभी ग्वाल नदी

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भूलने के विरुद्ध

खोया है सभी ने कुछ न कुछ तो। तसल्ली है या नियति? भूलना होगा मुझे भी पीछा करती पुकारें, कौन पत्थर बनना चाहता है?

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मुझे छिपाओ मत

चारों चरण सृजन के हैं आत्मनेपदी ही परस्मैपदी तो प्राण-प्रतिष्ठा से होते हैं। जड़-जंगम के बारे में अनजान फतिंगे गूलर फल में जन्मे, जगकर भी सोते हैं।

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सारे गम तू गा

सारे गम सिर से उतारकर सारे गम तू गा। रूखी धरती पर गंगा-सी हरियाली तू ला।बदल आज के आज मुहर्रम वाले ये चेहरे घुसपैठों का नया सिलसिला चोंच मार ठहरे न्यायालय में मृतक न्याय की प्रेतात्मा नाचे और फिरंगी भूत बजाए तबला ताधिन्ना।

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वर्तमान विसंगतियों का रेखांकन

नवनीत मार्गदर्शी हो तथा विचारधाराएँ जीवनप्रवाह की सततता को नवोन्मेषी बनाती हों और डॉ. शोभा जैन के इस वैचारिक

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