कभी कभी

कभी-कभी उलझा लेता है कोई काँटा। कभी कोई तार, कभी चलते-चलते कोई कील लेती उलझा!उलझ कर रह जाता है कोई वस्त्र। उलझा लेता है कभी-कभी कोई सन्नाटा!

और जानेकभी कभी

चिड़ियो की आवाज

यह चिड़ियों की आवाज है कही से आती हुई सुंदर है। यहीं यहीं यहीं कहीं। यह चिड़ियों की आवाज है देर से, दूर से भी न आती हुई– यह एक डर है!!

और जानेचिड़ियो की आवाज

सुबह

फूल की सुगंध में सुबह जल की लहरियों पर सुबह पंछी के परों पर सुबह धरों पर सुबह छतों, छज्जों पर सुबह उपवन में सुबह चितवन में सुबह

और जानेसुबह

आश्वासन

हीं, मैं नहीं दे सकता कोई आश्वासन साथ निभाने का प्यार से जीवन सँवारने का तुम्हारी हथेली पर मेहँदी का रंग चढ़ाने का, बाँहों में कसने का

और जानेआश्वासन