कभी कभी
कभी-कभी उलझा लेता है कोई काँटा। कभी कोई तार, कभी चलते-चलते कोई कील लेती उलझा!उलझ कर रह जाता है कोई वस्त्र। उलझा लेता है कभी-कभी कोई सन्नाटा!
कभी-कभी उलझा लेता है कोई काँटा। कभी कोई तार, कभी चलते-चलते कोई कील लेती उलझा!उलझ कर रह जाता है कोई वस्त्र। उलझा लेता है कभी-कभी कोई सन्नाटा!
यह चिड़ियों की आवाज है कही से आती हुई सुंदर है। यहीं यहीं यहीं कहीं। यह चिड़ियों की आवाज है देर से, दूर से भी न आती हुई– यह एक डर है!!
फूल की सुगंध में सुबह जल की लहरियों पर सुबह पंछी के परों पर सुबह धरों पर सुबह छतों, छज्जों पर सुबह उपवन में सुबह चितवन में सुबह
हाथ से छूट गई डाल कहती हुई मानो : नहीं, और मत तोड़ो, फूल बहुत हैं, जितने हैं हाथ में छोड़ो...और मत तोड़ो!
हीं, मैं नहीं दे सकता कोई आश्वासन साथ निभाने का प्यार से जीवन सँवारने का तुम्हारी हथेली पर मेहँदी का रंग चढ़ाने का, बाँहों में कसने का
यह कैसी विडंबना है कि तुम्हें किसी बच्ची में युवती में या वृद्धा में किसी भी रिश्ते की झलक नहीं दिखाई देती