आग सेंकता घर
चढ़ते दिन और ढलती शाम के बीच खाली होता घर जैसे इंतजार कर रहा होता है
चढ़ते दिन और ढलती शाम के बीच खाली होता घर जैसे इंतजार कर रहा होता है
जो पढ़े लिखे विकसित थे पढ़ रहे थे बर्बरता और अपराधों के कानून की किताबें
उन्हें तारों का टूटना पसंद नहीं और न नदियों का सूखना न ही धरती का फटना
अचानक से कोई रोक दे नदी का बहना और असंगत हो जाए विस्थापित नियमों से!
वे जो दिखते हैं हमारे आसपास बड़ी नैतिकता वाले लोग पेड़ों को काटकर सजाते हैं अपने घर
बीज उड़ता है आसमान में बहता है नदी की धार में जानवरों की अँतड़ियों और चिड़ियों की चोंच में फँसकर चला जाता है सरहदों के पार दूर तक