मसीहा मुस्कुराता है

मेरी चारों ओर शिविर लगे हुए हैं जहाँ नई-नई तालिमें दी जा रही हैं दिशाओं में शोर है– इतिहास बदला जा रहा है पलित मूल्यों के पाए ढाए जा रहे हैं कोई अवतार या मसीहा जन्म ले रहा है मैं एक अदना आदमी की हैसियत से शिविर को देख रहा हूँ

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अब हंसने और हँसाने का

अब हँसने और हँसाने का कोई पर्व-त्योहार क्यों नहीं होता हर आदमी बदहवास होकर न जागता है न सोता है कई बार टिकट कटाकर सिर्फ हँसने-हँसाने के लिए ट्रेन पर चढ़-चढ़कर उतरता गया हूँ

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मेरी कविता मुझसे करती है सवाल

तुम कैसे हो मधुकर बाबूलाल अब तुम मुझ से नाता तोड़ो भूखे मरने से अच्छा है और कहीं जाकर नाता जोड़ो मैंने हरदम तुमको तंग किया है तुमसे हरदम जंग किया है फिर भी तुमने हार नहीं मानी

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हलधर जाग गया है

हलधर जाग गया है हाँ, हलधर जाग गया है शुभद्र घर-आँगन बुहारकर हाथ में झाड़ू लेकर अपनी सखियों और पड़ोसियों को लेकर जुम गई हैं कांधा भी जंग लगा सुदर्शन को साफ कर रहा है

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सिरफिरा जनगणना अधिकारी

सभी उसे कहते हैं गलबा अगर हवेली में जन्मा होता तो आदर से पुकारते गुलाबजी पसीना गुलाब की तरह महकता हवेली की मजबूत दीवारें

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