हम फिर मिलेंगे
मुझे याद है वह बसंत का मौसम था मैंने उससे इतना ही कहा– अगले बसंत में हम फिर मिलेंगे चिड़ियों वाले उसी घने पेड़ के नीचे!
मुझे याद है वह बसंत का मौसम था मैंने उससे इतना ही कहा– अगले बसंत में हम फिर मिलेंगे चिड़ियों वाले उसी घने पेड़ के नीचे!
मन की तरह कोई सीमा नहीं होती उम्मीदों की भी वे उग आ सकती हैं किधर से भी वे बहुत-सी उदासी के साथ ले आती हैं थोड़ा-सा उजास
जब मैं उसे याद कर रहा होता हूँ तो क्या उसे पता भी होता है कि मैं उसे याद कर रहा हूँ
उस दिन के बाद मैंने कुछ भी रचने की कोशिश नहीं की मेरे भीतर झरती हुई बारिश तब से लगातार रच रही है मुझे!
उसने तो यही कहा था उसकी रूह मेरी थी मेरे जिस्म की वो मालिक थी इश्क का टाइप कुछ भी कहे दुनिया मगर फिर भी था तो...इश्क ही
तेरी यादों से बुनता हूँ रोज ये लबादा जाने वाले तुम... आखिर याद ही क्यों आते हो!