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कविता

Home » कविता » Page 38
 देह की गंध

देह की गंध

  • Post author:abhiranjan.priyadarshi
  • Post published:December 1, 2021
  • Post category:काव्य धारा
  • Post comments:0 Comments

गुलों की पंखुड़ियों से भँवरों की खिलवाड़ जारी है अरब के हैं इत्र बेमिसाल लेकिन उनकी देह की गंध न्यारी है

और जानेदेह की गंध
 वजूद

वजूद

  • Post author:abhiranjan.priyadarshi
  • Post published:December 1, 2021
  • Post category:काव्य धारा
  • Post comments:0 Comments

जो दे नहीं सकती किसी मुँह को निवाला मेरा वजूद है चाँद हो जाना... और तपते दिन को सुकून दे जाना

और जानेवजूद
 जागता रहूँ

जागता रहूँ

  • Post author:abhiranjan.priyadarshi
  • Post published:December 1, 2021
  • Post category:काव्य धारा
  • Post comments:0 Comments

मन भर धूल फाँक कर तुम इसी तरह जागते रहो। मैं इसी तरह भागता रहूँ तुम इसी तरह भागते रहो, मैं इसी तरह जागता रहूँ।

और जानेजागता रहूँ
 बारहखड़ी

बारहखड़ी

  • Post author:abhiranjan.priyadarshi
  • Post published:December 1, 2021
  • Post category:काव्य धारा
  • Post comments:0 Comments

एक पूरी, धकापेल तू भी क्यों नहीं चढ़ गया एक नक़द बारहखड़ी तू भी क्यों नहीं पढ़ गया? ‘मन पछितैहें अवसर बीते’

और जानेबारहखड़ी
 न होगा तेरा अंत

न होगा तेरा अंत

  • Post author:abhiranjan.priyadarshi
  • Post published:December 1, 2021
  • Post category:काव्य धारा
  • Post comments:0 Comments

बच्चा गोबर्धनदास! तू क्यों होता उदास? अभी न होगा तेरा अंत!

और जानेन होगा तेरा अंत
 ठग पिंडारी

ठग पिंडारी

  • Post author:abhiranjan.priyadarshi
  • Post published:December 1, 2021
  • Post category:काव्य धारा
  • Post comments:0 Comments

‘ओ बेपीर पीर, मैं हारी जाने दे, मैं हूँ अधमारी।’ भर बाजार अदालत सारी चाट रहे हैं ठग-पिंडारी!

और जानेठग पिंडारी
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