सलाखें
लाठी गोली अमला फौज सब हो जाते बेकार जब भी शब्द लेते हैं रूप भाषा में ढलते हैं विचारतानाशाहों की उड़ जाती है नींद भोर के अंतिम पहर तक
लाठी गोली अमला फौज सब हो जाते बेकार जब भी शब्द लेते हैं रूप भाषा में ढलते हैं विचारतानाशाहों की उड़ जाती है नींद भोर के अंतिम पहर तक
तुमने कहा तुम खुली किताब हो और मैंने मान लिया तुमने कहा तुम झूठ नहीं बोलते और मैंने मान लिया पर जब मैंने कहा मैं आजाद पंछी हूँ
एक माँ की ममता और वट वृक्ष की जड़ें बहुत गहरी होती हैं तभी तो वे सिर्फ सहारा देना जानती हैं जिसकी गहराई
बड़ी ढीठ होती हैं लड़कियाँ हर रिश्ते में रिसता जाता है इनका स्वाभिमान भींग जाती है वह समूची पर हार नहीं मानती।
जिंदगी की कहानी रही अनकही दिन गुजरते रहे, साँस चलती रही।अर्थ क्या, शक्क की अनमने रह गए कोष से जो खिंचे तो तने रह गए वेदना अश्रु-पानी बनी, बह गई धूप ढलती रही, छाँह छलती रही!
तम के गह्वर में दीये की टिमटिमाती लौ देती है इक उम्मीद जो निज पर को फड़फड़ाते हुए एक ऐसी उड़ान भरती है