सलाखें

लाठी गोली अमला फौज सब हो जाते बेकार जब भी शब्द लेते हैं रूप भाषा में ढलते हैं विचारतानाशाहों की उड़ जाती है नींद भोर के अंतिम पहर तक

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राजनीती

तुमने कहा तुम खुली किताब हो और मैंने मान लिया तुमने कहा तुम झूठ नहीं बोलते और मैंने मान लिया पर जब मैंने कहा मैं आजाद पंछी हूँ

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बड़ी ढ़ीट होती है लड़कियाँ

बड़ी ढीठ होती हैं लड़कियाँ हर रिश्ते में रिसता जाता है इनका स्वाभिमान भींग जाती है वह समूची पर हार नहीं मानती।

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जिंदगी की कहानी

जिंदगी की कहानी रही अनकही दिन गुजरते रहे, साँस चलती रही।अर्थ क्या, शक्क की अनमने रह गए कोष से जो खिंचे तो तने रह गए वेदना अश्रु-पानी बनी, बह गई धूप ढलती रही, छाँह छलती रही!

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