शत शत नमन
पुरखों ने गंगा की निर्मल धारा को, पाटलिपुत्र में नमन करके जो बीज वपन किया था
कदंब का पेड़
यह कदंब का पेड़ अगर माँ होता यमुना तीरे मैं भी उस पर बैठ कन्हैया बनता धीरे-धीरे ले देतीं यदि मुझे बाँसुरी तुम दो पैसे वाली किसी तरह नीची हो जाती यह कदंब की डाली
चरम का पतन
क्रूरता और पाशविकता के जंगल में सारी सीमाओं का गला घोट अनुशासन को ताँक पर रखे
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