शल्यक्रिया
इतनी चीरफाड़ अनुभूति की मन के खोल को भेदकर शरीर के अंदर से धरती तक शल्यक्रिया शरीर को चीरकर शल्यक्रिया अतींद्रिय फूल नहीं खिलते क्या!
इतनी चीरफाड़ अनुभूति की मन के खोल को भेदकर शरीर के अंदर से धरती तक शल्यक्रिया शरीर को चीरकर शल्यक्रिया अतींद्रिय फूल नहीं खिलते क्या!
अंकिया भाओना का विदूषक हरीतिका वन से आकर हमारे मानस में बसा पाँचवीं या छठी शताब्दी का शैशव की धुँधली अववाहिका में चेहरे पर रंग पोते बहुरूपिये उनकी उछलकूद, चीत्कार सीटीहास्य मधुर उलझन सपने के मंच पर चढ़ते हुए छोटे बड़े अवयव के
घने जंगल के बाघ और मन के कोने में बसे हुए बाघ की समता, दूरातीतआश्चर्यजनक रूप से बढ़ते हैं लहू में निरूसार बने हुए बाघ
धूल की इस प्रात्यहिकता में विभिन्न आयतन के हेमलेट के साथ हमारा दृष्टि विनिमय होता है बंधु हेमलेट, संतान हेमलेट जीवन नाटक का रसज्ञ समालोचक समाधि खोदने वाले के साथ भी उसका कथोपकथन
यह संग में लागियै डोलैं सदा, बिन देखे न धीरज धानती हैं छिन्हू जो वियोग परै ‘हरिचंद्र’, तो चाल प्रलै की सु ठानती हैं बरुनी में धिरैं न झपैं उझपैं, पल में न समाइबो जानती हैं प्रिय पियारे तिहारे निहारे बिना, अँखिया दुखिया नहिं मानती हैं।
आज से पहले हम नहीं थे कभी इतने अकेले जंगलों और कंदराओं में भी नहीं वहाँ भी हम साथ-साथ रहते थे करते थे साथ-साथ शिकार साथ-साथ झेलते थे शीत और धूप की मार यह ठीक है कि तब हमारा नहीं था कोई