मुक्तिपर्व
बह सकूँ वादियों में निस्सिम सी मैं बाँसुरी का राग हूँ मैं मन की वो आवाज़ हूँ सुबह की पाक

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बह सकूँ वादियों में निस्सिम सी मैं बाँसुरी का राग हूँ मैं मन की वो आवाज़ हूँ सुबह की पाक

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 नियति
Me and the Moon by Arthur Dove- WikiArt

नियति

संपूर्ण समर्पण सा वज्र के लिए दधीचि होना मर्मान्तक पीड़ा सा दधीचि का वज्र होना... चलती हैं दोनों क्रियाएँ जन्म भर...! नियति बस हँसती है नियन्ता वो नहीं निर्भर करता…

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