भारत माता
कपड़े रंग गए थे होली के रंग की तरह खून मिश्रित हो गया था जख्म और सृष्टि दोनों का निर्माण की क्रिया में। लोग देख रहे थे
कपड़े रंग गए थे होली के रंग की तरह खून मिश्रित हो गया था जख्म और सृष्टि दोनों का निर्माण की क्रिया में। लोग देख रहे थे
सूखने लगा था गला भरभरा रहा था प्यास से। भय ही भय था दूर क्षितिज तक अपने जैसे मानव की दर्दनाक मौत- दुर्गति देख कर,
बहुत दिनों के बाद बच्चों ने आँख मिचौली खेली है पार्क में बॉल उछली है। बहुत दिनों के बाद स्कूल की घंटी बजी है गरीब का चूल्हा हँसा है,
डूबते सूरज गिन रहा है जबकि वह अंतिम सूरज गिन चुका होगा साधारण आदमी के सूरज ऐसे ही बेमालूम डूबते हैं जैसे कहीं कुछ हुआ ही नहीं।
कुछ नहीं हुआ देव! कुछ नहीं इस महाविनाशक आपात समय में जब हमें तुम्हारे आसरे की जरूरत है तुम कहीं दिखाई नहीं दे रहे न ही कहीं तुम्हारी लीला,
कितने इसके तारे टूटे कितने इसके प्यारे छूटे जो छूट गए फिर कहाँ मिले पर बोलो टूटे तारों पर कब अंबर शोक मनाता है जो बीत गई सो बात गई।