जीने के लिए
हक़ीक़त में कमज़ोर तुम थे मैं नहीं, तुम समझ ना पाए कभी झूठ के फूस पर सुलगता ये अंगार काफ़ी है मेरे जीने के लिए
हक़ीक़त में कमज़ोर तुम थे मैं नहीं, तुम समझ ना पाए कभी झूठ के फूस पर सुलगता ये अंगार काफ़ी है मेरे जीने के लिए
पके भोजन तक थी सपनों की दौड़ कबीलों में बसा आदमी प्रकृति के भयानक रूपों से डरता था मगर देश से प्यार करता था
तुम जिस ज़मीन को पूँजी के बूटों तले रौंदना चाहते हो उनके लिए वही भारत माता है इसीलिए उनके पाँव
एक चमकीली रात में उदास तारों के साथ मैं निकल जाता हूँ अक्सर किसी अनजान सफ़र पर और देखता हूँ नगरीकरण से प्रताड़ित गाँव का पुराना बरगद छठ मैया के…
तुमने मेरे लिए अनन्त के अछोर तक वहीं पर हैं तीर्थ और निर्वाण का सुख भी।
दुश्मन के गढ़ में घुस कर उसे नेस्तनाबूद करने के बाद जैसे लौट आती है विजयिनी सेना छोड़ कर ध्वंसावशेष और अपनी विजय के ढेरों पद-चिह्न ठीक वैसे ही इत्मिनान,…